आषाढ़ी पूर्णिमा गुरु पुर्णिमा २०६६
अघोरपंथ के विषय में अघोर परम्परा के दैदिप्यमान नक्षत्र एवं अधिकारी सन्त , महापुरुष अनन्त श्री विभूषित परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी द्वारा बतलाया गया है किः
"जो घोर न हो, कठिन न हो, कड़ुवा न हो उसे "अघोर" कहते हैं । अघोर सुगम पंथ है । इसका अनुगमन स्वभाव की मंथर गति से होता है । पापों का पक्ष, तपों की गति जहाँ न हो वही अघोर है । हम घर और बाहर सुगम उपायों को ढ़ूंढ़ते हैं । वह क्या है ? वह अघोर है । यह पावन पथ है । इसमें जीवन का रस निहित है, ये मर्मीली बातें हैं समझने पर ही मिलती हैं । यह आनन्द संग्रह का सब रस है । इसे निःसंकोच पाया जा सकता है । भटकते हुये मानवों के कृत संकल्प को यह पुराता हे । यह शिव है, यह गूंगों का रस है । इसे पाने के लिये दृष्टि भेद छोड़ना होगा । यह न पृथक है न अपना है । जगत मिथ्या या सपना नहीं होता । ब्रह्म सत्य है तो ब्रह्म की सृष्टि भी सत्य है । जिन बीजों से पौधे उगते हैं यदि वह सत्य हैं तो पौधे उससे अलग नहीं । अतः वह सत्य है और उसका जगत सत्य है । यह विचार भी सत्य है । अपने को तृप्त करने के लिये जब सुमन सा प्रसन्न मन का गौरवमय पर्णों से हार गूँथोगे तो यह हार हृदय का स्वागत करेगा । अपरिपक्व ज्ञान का त्याग करके जो पूरन है उसके पथ पर साधकों को चलना है । अनन्त आनन्द प्राप्त करने के लिये मन विचार के क्रंदन को अनसुनी करना होगा । तब शान्त हृदय होकर साधक त्रितापों को कटाकर सुख समृद्धि के घेरे में विश्राम पाता है । जन समूह के गौरव को उन्नतीशील बनाना साधना का लक्ष्य है । साधुपथ इससे भिन्न कुछ नहीं, परन्तु समझने पर ही यह दीखता है और सभी गुण दिखलाने लगते हैं, यह अविचल सत्य है ।"
अघोर का शब्दकोशीय अर्थ राजा राधाकान्तदेव विरचित, शब्दकल्पद्रुम ग्रंथ के भाग १ में इस प्रकार दिया हुआ है ।
"अघोरः, पुं ," या ते रुद्र ! शिवा तनुरघोरा पापकाशिनी" इति वेदः । महादेवः ।"
"शिवं कल्याणं विद्यते अस्य शिवः । श्यति अशुभं इतिवा, शेरतेअवतिष्ठन्ते अणिमादयो अष्टौ गुणा अस्मिन् इति वा शिवः ।"
जिनमें समस्त मँगल विद्यमान हैं , जो अशुभ का खंडन करते हैं, अथवा जिनमें अष्ट ऐश्वर्य, ।। १,अणिमा २,महिमा ३,लघिमा ४,प्राप्ति ५,प्राकाम्य ६,ईशित्व ७, वशित्व ८, कामावसायिता ।। अवस्थित हैं, वे ही शिव हैं ।
अघोरपंथ के विषय में अघोर परम्परा के दैदिप्यमान नक्षत्र एवं अधिकारी सन्त , महापुरुष अनन्त श्री विभूषित परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी द्वारा बतलाया गया है किः
"जो घोर न हो, कठिन न हो, कड़ुवा न हो उसे "अघोर" कहते हैं । अघोर सुगम पंथ है । इसका अनुगमन स्वभाव की मंथर गति से होता है । पापों का पक्ष, तपों की गति जहाँ न हो वही अघोर है । हम घर और बाहर सुगम उपायों को ढ़ूंढ़ते हैं । वह क्या है ? वह अघोर है । यह पावन पथ है । इसमें जीवन का रस निहित है, ये मर्मीली बातें हैं समझने पर ही मिलती हैं । यह आनन्द संग्रह का सब रस है । इसे निःसंकोच पाया जा सकता है । भटकते हुये मानवों के कृत संकल्प को यह पुराता हे । यह शिव है, यह गूंगों का रस है । इसे पाने के लिये दृष्टि भेद छोड़ना होगा । यह न पृथक है न अपना है । जगत मिथ्या या सपना नहीं होता । ब्रह्म सत्य है तो ब्रह्म की सृष्टि भी सत्य है । जिन बीजों से पौधे उगते हैं यदि वह सत्य हैं तो पौधे उससे अलग नहीं । अतः वह सत्य है और उसका जगत सत्य है । यह विचार भी सत्य है । अपने को तृप्त करने के लिये जब सुमन सा प्रसन्न मन का गौरवमय पर्णों से हार गूँथोगे तो यह हार हृदय का स्वागत करेगा । अपरिपक्व ज्ञान का त्याग करके जो पूरन है उसके पथ पर साधकों को चलना है । अनन्त आनन्द प्राप्त करने के लिये मन विचार के क्रंदन को अनसुनी करना होगा । तब शान्त हृदय होकर साधक त्रितापों को कटाकर सुख समृद्धि के घेरे में विश्राम पाता है । जन समूह के गौरव को उन्नतीशील बनाना साधना का लक्ष्य है । साधुपथ इससे भिन्न कुछ नहीं, परन्तु समझने पर ही यह दीखता है और सभी गुण दिखलाने लगते हैं, यह अविचल सत्य है ।"
अघोर का शब्दकोशीय अर्थ राजा राधाकान्तदेव विरचित, शब्दकल्पद्रुम ग्रंथ के भाग १ में इस प्रकार दिया हुआ है ।
"अघोरः, पुं ," या ते रुद्र ! शिवा तनुरघोरा पापकाशिनी" इति वेदः । महादेवः ।"
"शिवं कल्याणं विद्यते अस्य शिवः । श्यति अशुभं इतिवा, शेरतेअवतिष्ठन्ते अणिमादयो अष्टौ गुणा अस्मिन् इति वा शिवः ।"
जिनमें समस्त मँगल विद्यमान हैं , जो अशुभ का खंडन करते हैं, अथवा जिनमें अष्ट ऐश्वर्य, ।। १,अणिमा २,महिमा ३,लघिमा ४,प्राप्ति ५,प्राकाम्य ६,ईशित्व ७, वशित्व ८, कामावसायिता ।। अवस्थित हैं, वे ही शिव हैं ।
वैदिक साहित्य में शिव को ही रुद्र के नाम से अभिहित किया गया है । ॠग्वेद के अनुसार रुद्र देवता अत्यंत भीषण, क्रोधी और संहारक हैं किन्तु इतना होने पर भी वे ज्ञानी, दानी, भूमि को उर्वरता प्रदान करनेवाले, सुखदाता, औषधों का प्रयोग करनेवाले और रोग दूर करनेवाले भी माने गये हैं । रुद्र के स्वरुप का वर्णन शारदातिलक तंत्र के इस ध्यान मंत्र में निहित है ।
"सजलघन समाभं भीमदंष्ट्रं त्रिनेत्रं भुजगधरनघोरं रक्त वस्त्रांग रागं ।
परशु डमरु खडगान् खेटकं वाण चापौ त्रिशिखनरकपाले विभ्रतं भावयामि" ।।
शिव, महादेव, या रुद्र के पाँच मुख माने गये हैं।
१, ईशान २, तत्पुरुष ३, अघोर ४,वामदेव ५, सद्योजात ।
इस प्रकार शिव या रुद्र के जिन अनेक रुपों के वैदिक साहित्य, तन्त्र साहित्य और पौराणिक साहित्य में विवरण प्राप्त होता है उससे यह अत्यंत स्पष्ट है कि समस्त पश्चिम से पूर्व तक विस्तृत एशिया का दक्षिण भाग शिव या रुद्र के अनेक रुपों का ध्यान और पूजन करता था और उन रुपों के अनुसार ही अनेक दार्शनिक सम्प्रदायों और पन्थों का आविर्भाव हो चला। इन्हीं में एक अघोर पंथ भी था ।
अघोर पथ के पथिक अघोरी, औघड़, ब्रम्हनिष्ठ, सरभंग , अवधूत, कापालिक , आदि नामों से अभिहित किये जाते हैं । हमारा आलोच्य विषय रुद्र और उनकी उपरोक्त अघोरमुख या अघोरा शक्ति तथा अघोरपथ के पथिक या साधक हैं ।
क्रमशः
ह्म्म, यह पंथ ऐसा है जो अक्सर आम आदमी के लिए कौतुहल भरा है।
जवाब देंहटाएंआशा है आपके ब्लॉग के माध्यम से इस कौतुहल का निदान होता रहेगा।
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है हिंदी ब्लॉगजगत पर
swagat hai !
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छी जानकारी प्रदान की है, अगले अंक का इंतिज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएं---
नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
jankari ke liye sadhuvad.narayan narayan
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगजगत् में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंहिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
जवाब देंहटाएंaghor ke bare main acchi jankari di.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएं