रविवार, जनवरी 10, 2010
अघोरेश्वर भगवान राम जीः गँगातट भ्रमण
अवधूत भगवान राम जी क्रींकुण्ड आश्रम से बाहर आकर सीधे पुण्यसलिला जाह्नवी की ओर बढ़े । गँगा जी को हम आपके जीवन के केन्द्र में पाते हैं । आपकी अधिकाँश साधनाएँ या तो गँगा जी के तट पर सम्पन्न हुई हैं या फिर बिन्ध्याचल पर्वत की कन्दराओं में । आप सोते , जागते, खाते, पीते,घूमते, फिरते, निरन्तर साधना में होते थे । सामान्यतः आपके साथ का व्यक्ति उन्हें पूजा पाठ करते नहीं देखता था । जब कभी आप कोई बड़ा अनुष्ठान करते तभी लोग जान पाते कि आप साधना कर रहे हैं ।
गँगा तट पर आकर आप उस शाश्वत के संकेत के अनुसार एक ओर बढ़ चले । आपके पास एक छोटे से मलमल के टुकड़े के अलावा एक नारियल का खप्पर भर था । आप इस खप्पर में ही सब कार्य निपटाते था । इसी खप्पर में भिक्षा ग्रहण करते, पीने के लिये जल भी इसी में लाते, पर पैखाना में भी इसी का उपयोग करते थे । दिन भर चलते रहते । किसी ने कुछ भोजन दे दिया तो ठीक, अन्यथा निराहार । एकाकी जहाँ साँझ होती रात्री विश्राम के लिये ठहर जाते ।
उस समय की घटनाओं का तिथिवार विवरण पाना तो संभव नहीं है, हाँ अघोरेश्वर जी ने स्वयं तथा अन्य श्रद्धालुओं, भक्तों, और शिष्यों ने अपने अनुभव को बाँटा है, वही जानकारी का श्रोत बना है । हम इन घटनाओं को १९५२ ई० से १९५५ ई० के बीच का मानकर चलते हैं । घटनाओं का क्रम आगे पीछे हो सकता है ।
अघोररुप
आपके परिजन अब भी आपको खोज लेते और वापस घर चलने के लिये जोर देते । आप स्वयं को भी ममतामयी माँ की याद बराबर विह्वल कर देती । आपकी आँखों से घंटों प्रेमाश्रु की धारा अविरल बहती रहती । आप अधीर हो उठते । आपने निश्चय कर लिया कि अब अष्टपाशों को तोड़ना ही होगा । इसी के साथ आपकी गुण्डी तथा बगवाँ की यात्रा का कार्यक्रम बन गया ।
गुण्डी में परिजनों, ग्रामवासियों ने अचानक एक दिन सुबह सुबह देखा कि उनके बीच के बालक भगवान सिंह केवल लंगोटी लगाये, पूरे शरीर में राख पोते, शराब के नशे में धुत्त, एक हाथ में मदिरा की बोतल तथा दूसरे हाथ में श्वान शव खींचते हुए गलियों में से जा रहे हैं । कुत्तों और बच्चों का दल शोर मचाते हुए पीछे पीछे चल रहा है ।
साधारण जन के लिये यह दृश्य बड़ा ही विभत्स तथा असहनीय था । आपके परिवार वालों को इसी दिन अनुभव हो गया कि अब भगवान सिंह परिवार में पुनः सम्मिलित करने लायक नहीं रहे । उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाय । इस यात्रा में आपने अपनी जननी से भी भेंट नहीं की । आप गुण्डी में बिना रुके आगे बगवाँ, अपनी ननिहाल गाँव के लिये चल दिये ।
बगवाँ में आप जब ननिहाल पहुँचे आपके नाना नानी अश्वस्थ थे । चलना फिरना नहीं कर पाते थे । वे दालान में खटिया पर लेटे हुए थे । आप जाकर पास में लगे चौकी में बैठ गये । आप पूरा अघोरी वेश में थे । वहाँ आपका पहुँचना था कि दरबार लग गया । उस समय तक दुधुवा या मदिरा खूब चलने लगा था । तम्बाखू भी चलता था । चिलम पर चिलम चढ़ता था । आप एक फूँक मारकर किसी को भी पकड़ा देते, सब प्रसादी पाते थे । भजन कीर्तन चलने लगा तो आधी रात हो गई । रात में बारह , एक बजे के लगभग आप उठ गये और टहलने लगे । बगल में मशान था, वहाँ चले गये और राख वाख लपेट लिये । लोगों ने सवेरे आपको फिर उसी दालान में पाया । बगवाँ में आप तीन चार दिन रहे ।
लगभग छह, सात माह के बाद आप फिर बगवाँ गये । शीत ॠतु थी । आपका आसन इस बार पंचायत भवन के बाहर में लगा । इस यात्रा में आपके साथ कृष्णाराम अघोरी उर्फ उड़िया बाबा छाया की भाँति लगे रहते थे । पंचायत भवन में आपने आठ दिन के लिये समाधि लगा लिया । जिस कमरे में आप थे, उसका दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया । खाना, पीना, नित्यकर्म आदि सब टहर गये । लोगों ने दरवाजा पीटा, आवाज दिया , जब किवाड़ी नहीं खुली तो बारी बारी से रखवारी करने लगे । आठ दिन के बाद दरवाजा खुला । आप बाहर आकर अपने आसन पर विराजमान हुए । कमरे से टोकरी भर ताजे ताजे सेवफल निकाल कर सबको प्रसाद बाँटा । लोग अचम्बित हो गये कि यहाँ ताजा सेव फल एक दूर्लभ वस्तु है, फिर बाबा जी आठ दिन से कमरे में बन्द थे । कोई आया न गया । फिर ये सेव कहाँ से आया ।
यज्ञ आयोजन
इसी समय , थोड़े थोड़े अन्तराल में आपने कई यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ तो देश में और भी बहुत लोग करते कराते हैं, परन्तु जो विचित्रता , अलौकिकता का दर्शन, अनुभव यज्ञ के यजमान तथा अन्य श्रद्धालुओं ने किया वह आश्चर्यजनक है । ऐसे ही एक यज्ञ की कथा का , अघोरेश्वर के प्रिय भक्त " अकिंचन राम जी द्वारा लिखित और अघोर गुरुपीठ ट्रस्ट, बनोरा जिला रायगढ़, छत्तिसगढ़ द्वारा प्रकाशित ग्रँथ " भगवान राम लीलामृत" में बड़े ही रोचक ढ़ँग से वर्णन किया गया है ।
कथा कुछ इस प्रकार हैः
"बारादरी में एक बार बाबा ने तीन दिन का महाविष्णु यज्ञ किया था । उसमें एक दिन सियार लोगों का भोजन करवाया था शाम को । उन सबको आमन्त्रित करने के लिये बाबा ने कागज के छोटे छोटे पुर्जों पर दिन तारीख और समय लिखवाकर , यह भी लिखवा दिया था कि आप लोग सादर आमन्त्रित हैं । उन कागज के पुर्जों को जितनी भी बाँसबाड़ियाँ थीं आसपास, वहाँ डलवा दिया गया था । निर्धारित दिन पर शाम के समय बाबा भोज का पत्तल और पुरवा में पानी लाइन से लगवा दिये और सबको वहाँ से हटा दिये । एक विश्वनाथ साव थे, जो उस यज्ञ के यजमान थे और एक ठाकुर साहब थे , ये दि व्यक्ति ही वहाँ रहे । बाबा की यही हिदायत थी कि बोलना मत एक भी शब्द चाहे कुछ भी हो जाय । नियत समय पर सियार लोग आकर भोजन करने लगे । भोजन करने के बाद सियार लोग सब वहाँ से बिदा हो गये ।"
राय पनारुदास के बगीचे में चन्द्र ग्रहण के अवसर पर बाबा एक और यज्ञ का आयोजन किये थे । इस यज्ञ में घटी एक घटना कुछ इस प्रकार हैः
" उस यज्ञ की व्यवस्था बड़े पैमाने पर की गई थी । आठ छोलदारियाँ लगाई गईं थीं । लगभग सत्तरह अठारह हजार साधु आये थे । साधुओं का जैसे जैसे आना होता गया, व्यवस्थापक लोग चिन्तित हो गये । बाबा के पास जाकर बोले कि देखिये, इतने सारे लोग आ रहे हैं और हमारे पास गल्ला है महज पाँच पाँच किलो । अब क्या किया जाय ।
बाबा बोले, "घबड़ाव मत । अइसन कर कि गल्ला वाला गोदाम के ताला लगा द । एकदम्म केहू के भीतर मत जाय द । अउर तू अपन काम करत रह ।"
तो यज्ञ हुआ, और बड़ा ही अच्छा यज्ञ हुआ । उसके बाद साधु लोगों को भोजन पानी दिया जाने लगा । लोगों ने खाया और खूब छककर खाया । उसी थोड़े से गल्ले में से सबको परोसा गया, लेकिन किसी को कुछ भी कम नहीं हुआ । जब आखिरी पाँत बैठी तो उसमे एक बूढ़े से साधु भी थे । वे जिद करने लगे कि हम गोदाम के अन्दर जायेंगे । व्यवस्थापक के मना करने पर वह साधु गाली गलौज करने लगे । बात बढ़ गई । आखिर अत्यन्त क्रोध में उन्होंने अपना हाथ श्राप देने को उठाया और कहा, " भस्म कर दूँगा ।"
अब देखिये । जहाँ पर यह घटना घट रही थी बाबा वहाँ से काफी दूरी पर थे । जहाँ बैठे हुए थे राय पनारुदास के बगीचे के चबूतरे पर, वहाँ से इस पाँत का दृश्य दिखता भी नहीं था , आवाज उन तक पहुँचने का प्रश्न ही नहीं था । लेकिन जैसे ही उस साधु ने अपना हाथ श्राप देने के लिये ऊपर उठाया बाबा दौड़ते हुए उन दोनो के बीच आ गये । दोनों हाथ उठाकर उन्होंने उस साधु को रोका , और बड़ी जोर से डाँटते हुए कहाः " कुल साधना हियईं दिखलावे के बा तो के अपन ? मत कर ई सब ।" मतलब यह कि उस साधु में जरुर भस्म कर देने की शक्ति रही होगी ।"
अघोरेश्वर एक विष्णु यज्ञ मनिहरा गाँव में भी कराये थे । बाबा की प्रेरणा से इस याग से बची हुई धनराशि से श्री गणेश जी का एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया गया ।
सकलडीहा बाजार के निकट, श्री विश्वनाथ साव जी के अनुरोध पर बाबा ने एक रूद्र याग भी करवाया था ।
वाराणसी के बाबू रघुनाथ प्रसाद जी ने इन्ही दिनों बाबा भगवान राम जी से आग्रह किया कि मुझे "माँ" का दर्शन करा दीजिये । बाबा ने उन्हें देवी याग करने का आदेश दिया । बाबू रघुनाथ प्रसाद यजमान होकर देवी याग करने लगे । बाबा भी वहाँ जाते थे । आपने बाबू रघुनाथ जी से कहा कि जो भूखा आए उसको सादर भोजन कराना । यज्ञानुष्ठान के बीच ही एक रात्रि को फटे वस्त्र पहनकर एक बूढ़ी स्त्री आई । आदेशानुसार यजमान ने उसका यथोचित स्वागत किया और स्वयं भोजन लाकर उसके आगे रखा । कुछ ही क्षणों में भोजन करके वह स्त्री न जाने किधर चली गई । उसके इस प्रकार चले जाने से यजमान को संदेह हुआ । दूसरे दिन बाबा ने उनसे पूछा कि कल रात को माँ के दर्शन मिले ? बाबू रघुनाथ जी को आश्चर्य मिश्रित हर्ष हुआ, क्योंकि उक्त घटना को उन्होने किसी को भी नहीं बतलाया था । जिस उद्देश्य से यज्ञ हो रहा था , उसकी सफलता से वे परम प्रसन्न हुए ।
इसके अलावा संवत २०१८ की ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को मड़ुवाडीह स्थित बगीचे में अघोरेश्वर के आदेश से सभी शाखाओं के लगभग तीस वैदिकों ने एकत्र होकर वसन्त पूजा की थी ।
क्रमशः
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