सोमवार, दिसंबर 20, 2010

अघोरेश्वर भगवान राम जीः आशीर्वचन

सत्य
एक बार अघोरेश्वर भगवान राम जी ने अपने प्रिय शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम जी के समक्ष सत्य की निम्नंकित व्याख्या की थी ।

" दर्शी ! जिसे प्रायः सत्य कहा जाता है, वह वस्तुस्थिति का कण मात्र है । लोग सत्य को जानते हैं , समझते नहीं । इसलिये बहुधा सत्य कड़ुआ तो लगता ही है । वह भ्रम भी उत्पन्न कर सकता है, जिसके फलस्वरुप बड़े बड़े दिग्गज और चोटी के विद्वान भी दिगभ्रमित हो जाते हैं , पथभ्रष्ट हो जाते हैं । जन सामान्य के लिये यह सामान्य बात है । कहीं कहीं पर सत्य, असत्य सा जीवन जीने को प्रेरित करने लगता है । इसमें आश्चर्य नहीं है ।

दर्शी ! सत्य सर्वत्र, सब देश में , और सब काल में एक सा नहीं होता है । माता पुत्र ही के लिये मिष्ठान्न छिपाकर डिब्बे में बन्द कर रखती है, किन्तु अधिक मिष्ठान्न खाने से अस्वस्थ हो जाने की संभावना से, वह उस बच्चे के समक्ष, प्रचलित सत्य के बदले यह असत्य बोलती है कि अब मिष्ठान्न समाप्त हो गया है । यदि माता सत्य बोल देती तो पुत्र अस्वस्थ हो जाता । इस लिये सर्वत्र समान सत्य, सत्य नहीं होता । "

क्रमशः

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