अघोर वचन- 29
"जब किसी काम को होना होता है तो उसका पहला एक लक्षण, दो लक्षण अपने सामने से गुजर जाता है । हम मार्क करें तो हम यह समझ सकते हैं कि अब उसका आगमन होने वाला है, और सचेत हो जाँय, और सचेत हो जाँय । और नहीं यदि हम ऐसे ही गुमराह में पड़े हैं तो गुमराह में पड़े रहेंगे ।"
०००
मनुष्य विशेष करके गृहस्थ के जीवन में अनेक काम बड़े महत्व के होते हैं जैसे बच्चों की शिक्षा, शादी, मकान बनाना, आदि आदि । व्यक्ति पहले किसी काम के होने की कामना करता है, फिर प्रयत्न । कभी काम सध जाता है कभी नहीं सधता । वचन में कहा गया है कि हम थोड़ा स्थिर चित्त होकर घट रही घटनाओं पर ध्यान दें, संयोगों को पहचानने के लिये सचेष्ट हों तो जब काम को होना होता है तब उसके आसार दिखने लगते हैं । ऐसा संयोग बनता चला जाता है कि काम यथासमय पूर्ण हो जाता है । हम साधारणतः इन लक्षणों को, संयोगों को कभी पहचान पाते हैं और कभी नहीं पहचान पाते । स्थिर चित्त होंगे तो पहचानने लगेंगे ।
भगवत भक्त, साधक के जीवन में साधना के कई पड़ाव होते हैं । वही उसका काम है । जब गुरू कृपा या भगवत कृपा साधक पर होने वाली होती है तो उसके लक्षण पहले ही प्रकट होने लगते हैं । साधक का हृदय उल्लास से भरने लगता है । बिघ्न बाधायें दूर भाग जाती हैं । उपासना में मन रमने लगता है, आदि । साधक इन लक्षणों को देख समझ कर सचेत हो जाता है । वह जान जाता है कि उस अज्ञात की कृपा उस पर होने ही वाली है । वह धन्य हो उठेगा ।
काम के सधने में इस प्रकार की जानकारी का बड़ा महत्व है । कभी कभी जब काम होने वाला ही होता है हम अनजाने में वापस हो लेते हैं, काम को छोड़ देते हैं, प्रयत्न में शिथिलता आ जाती है और होने वाला काम भी नहीं होता । जब मनुष्य लक्षण पहचान लेता है, वह प्रयत्न में और भी अधिक गँभीरता से जुट जाता है । उसे छोड़ता
नहीं ।
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"जब किसी काम को होना होता है तो उसका पहला एक लक्षण, दो लक्षण अपने सामने से गुजर जाता है । हम मार्क करें तो हम यह समझ सकते हैं कि अब उसका आगमन होने वाला है, और सचेत हो जाँय, और सचेत हो जाँय । और नहीं यदि हम ऐसे ही गुमराह में पड़े हैं तो गुमराह में पड़े रहेंगे ।"
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मनुष्य विशेष करके गृहस्थ के जीवन में अनेक काम बड़े महत्व के होते हैं जैसे बच्चों की शिक्षा, शादी, मकान बनाना, आदि आदि । व्यक्ति पहले किसी काम के होने की कामना करता है, फिर प्रयत्न । कभी काम सध जाता है कभी नहीं सधता । वचन में कहा गया है कि हम थोड़ा स्थिर चित्त होकर घट रही घटनाओं पर ध्यान दें, संयोगों को पहचानने के लिये सचेष्ट हों तो जब काम को होना होता है तब उसके आसार दिखने लगते हैं । ऐसा संयोग बनता चला जाता है कि काम यथासमय पूर्ण हो जाता है । हम साधारणतः इन लक्षणों को, संयोगों को कभी पहचान पाते हैं और कभी नहीं पहचान पाते । स्थिर चित्त होंगे तो पहचानने लगेंगे ।
भगवत भक्त, साधक के जीवन में साधना के कई पड़ाव होते हैं । वही उसका काम है । जब गुरू कृपा या भगवत कृपा साधक पर होने वाली होती है तो उसके लक्षण पहले ही प्रकट होने लगते हैं । साधक का हृदय उल्लास से भरने लगता है । बिघ्न बाधायें दूर भाग जाती हैं । उपासना में मन रमने लगता है, आदि । साधक इन लक्षणों को देख समझ कर सचेत हो जाता है । वह जान जाता है कि उस अज्ञात की कृपा उस पर होने ही वाली है । वह धन्य हो उठेगा ।
काम के सधने में इस प्रकार की जानकारी का बड़ा महत्व है । कभी कभी जब काम होने वाला ही होता है हम अनजाने में वापस हो लेते हैं, काम को छोड़ देते हैं, प्रयत्न में शिथिलता आ जाती है और होने वाला काम भी नहीं होता । जब मनुष्य लक्षण पहचान लेता है, वह प्रयत्न में और भी अधिक गँभीरता से जुट जाता है । उसे छोड़ता
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