बाबा कीनाराम जी के प्रथम शिष्य एवं क्रीकुण्ड स्थल के तीसरे महंथ बाबा बीजाराम का पूर्व नाम , कुल, गोत्र आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं है । उनका गाँव, जहाँ वे बाबा कीनाराम जी से भेंट के समय रहते थे, का नाम "नईडीह " है । बाबा का जन्म एक अत्यंत ही गरीब परिवार में हुआ था । बाबा बालक ही थे, जब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था ।
बाबा कीनाराम जी जब ग्राम नई डीह पहुँचे, उन्होने देखा, एक घासफूस की झोपड़ी है । झोपड़ी के द्वार पर एक बुढ़िया बैठी कलप कलप कर रो रही है । बुढ़िया के रोने का दृश्य कारुणिक था । बाबा कीनाराम जी करुणानिधान तो थे ही, उनका हृदय पसीज गया । उन्होने रोती हुई बुढ़िया को उसके दुख का कारण पूछा । पहले तो बाबा कीनाराम जी को कोई साधारण साधु समझकर बुढ़िया ने कहाः " जाओ बाबा तुम माँगो खाओ, हमारा दुखड़ा जानकर क्या करोगे " । परन्तु जब बाबा ने बहुत आग्रह किया तो न जाने क्या सोचकर बुढ़िया ने बतलाया " बाबा हमारे बेटे पर जमींदार का पोत चढ़ गया है, इसलिये वह उसे पकड़ ले गया है" । यह सुनकर बाबा कीनाराम जी ने बुढिया से जमींदार के घर ले चलने को कहा, जिसे उक्त बुढिया ने कुछ न समझते हुए भी मान लिया और उसने बाबा कीनाराम जी को जमींदार के यहाँ ले गई । बुढिया का पुत्र जमींदार के घर के बाहर धूप में पड़ा था । जमींदार उसे नानाप्रकार से प्रताड़ित कर रहा था । बुढिया ने अपने बेटे की ओर संकेत कर बाबा को बतला दिया कि धूप में प्रताड़ित किया जा रहा वही बालक उसका पुत्र है और पुनः रोने लगी । बाबा कीनाराम जी ने बालक को एकबार भरपूर दृष्टि से निहारकर जमींदार से कहा कि" मानवता के नाम पर, आपको क्रूर भावना त्यागकर इस बालक को छोड़ देना चाहिये "। बाबा कीनाराम जी के कथन पर विशेष ध्यान दिये बिना ही जमींदार बोला " अरे बाबा! तुम साधु हो भिक्षा लो और अपना काम देखो " । बाबा कीनाराम जी ने तो जैसे हठ पकड़ लिया । बाबा का हठ देखकर जमींदार की नाराजगी बढ़ रही थी, परन्तु वह साधु का अपमान भी नहीं करना चाहता था । अतः उन्हें निरुत्तर कर दूर हटाने की नियत से जमींदार ने कहा कि यदि इस लड़के से आपका ऐसा ही मोह है तो इसके उपर जितना पोत है वह आप चुका दो । इतना सुनना था कि बाबा ने उस लड़के से कहा " खड़ा तो हो जा बेटा " । बालक खड़ा हो गया । बाबा कीनाराम जी ने जमींदार से कहा कि " ले जहाँ वह बालक खड़ा है, वहाँ की जमीन खुदवा ले और जितना तेरा रुपया हो निकाल ले " । जमींदार बाबा के कहने पर जमीन खुदवाने के लिये एकाएक तो तैयार नहीं हुआ, परन्तु बाबा कीनाराम जी की दृढता के सामने उसे झुकना पड़ा । जमीन खोदी गई । हाथ दो हाथ खोदते न खोदते, वहाँ उपस्थित सभी आश्चर्य चकित हो देखते क्या हैं कि धरती से कलदार ही कलदार निकल रहे हैं । यह दृश्य देखते ही जमींदार समझ गया कि ये कोई सिद्ध महात्मा हैं । वह दौड़कर बाबा का पाँव पकड़ लिया और क्षमा याचना करने लगा । बाबा कीनाराम जी के क्षमा प्रदान करने पर ही उसने बाबा का पाँव छोड़ा । उसने तत्काल उस बालक को पोत मुक्त घोषित कर दिया ।
इस प्रकार लड़के को पोत मुक्त कराकर बाबा ने उसकी माँ को सौंप दिया और अपनी राह चलने लगे । बुढिया ने , जो इतनी देर तक संज्ञाशून्य अवस्था में खड़ी थी, बाबा के चरणों में गिर गई । उसने विनती भरे शब्दों में याचना की " महाराज! यह लड़का आपका है। आपको सौंपती हूँ । आप इसे अपने साथ ले जाँय ।" बाबा ने बुढिया को बहुत प्रकार से समझाया, पर वह नहीं मानी । विवश होकर बाबा कीनाराम जी ने उस बालक को स्वीकार कर लिया और उसे लेकर गिरनार की ओर चल पड़े । वही बालक बाद में बाबा बीजाराम कहलाये और क्रींकुण्ड की जगत प्रसिद्ध गद्दी के तीसरे महंथ हुए ।
महंथ बाबा बीजाराम ने अपने गुरु अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी के दिब्य क्रियाकलापों, चमत्कार भरी घटनाओं, को संकलित कर औघड़ रामकीना कथा के नाम से लिपिबद्ध किया है ।
इसके अलावा बाबा बीजाराम के विषय में छिटपुट , जहाँतहाँ उल्लेख भर मिलता है ।
बाबा कीनाराम जी जब ग्राम नई डीह पहुँचे, उन्होने देखा, एक घासफूस की झोपड़ी है । झोपड़ी के द्वार पर एक बुढ़िया बैठी कलप कलप कर रो रही है । बुढ़िया के रोने का दृश्य कारुणिक था । बाबा कीनाराम जी करुणानिधान तो थे ही, उनका हृदय पसीज गया । उन्होने रोती हुई बुढ़िया को उसके दुख का कारण पूछा । पहले तो बाबा कीनाराम जी को कोई साधारण साधु समझकर बुढ़िया ने कहाः " जाओ बाबा तुम माँगो खाओ, हमारा दुखड़ा जानकर क्या करोगे " । परन्तु जब बाबा ने बहुत आग्रह किया तो न जाने क्या सोचकर बुढ़िया ने बतलाया " बाबा हमारे बेटे पर जमींदार का पोत चढ़ गया है, इसलिये वह उसे पकड़ ले गया है" । यह सुनकर बाबा कीनाराम जी ने बुढिया से जमींदार के घर ले चलने को कहा, जिसे उक्त बुढिया ने कुछ न समझते हुए भी मान लिया और उसने बाबा कीनाराम जी को जमींदार के यहाँ ले गई । बुढिया का पुत्र जमींदार के घर के बाहर धूप में पड़ा था । जमींदार उसे नानाप्रकार से प्रताड़ित कर रहा था । बुढिया ने अपने बेटे की ओर संकेत कर बाबा को बतला दिया कि धूप में प्रताड़ित किया जा रहा वही बालक उसका पुत्र है और पुनः रोने लगी । बाबा कीनाराम जी ने बालक को एकबार भरपूर दृष्टि से निहारकर जमींदार से कहा कि" मानवता के नाम पर, आपको क्रूर भावना त्यागकर इस बालक को छोड़ देना चाहिये "। बाबा कीनाराम जी के कथन पर विशेष ध्यान दिये बिना ही जमींदार बोला " अरे बाबा! तुम साधु हो भिक्षा लो और अपना काम देखो " । बाबा कीनाराम जी ने तो जैसे हठ पकड़ लिया । बाबा का हठ देखकर जमींदार की नाराजगी बढ़ रही थी, परन्तु वह साधु का अपमान भी नहीं करना चाहता था । अतः उन्हें निरुत्तर कर दूर हटाने की नियत से जमींदार ने कहा कि यदि इस लड़के से आपका ऐसा ही मोह है तो इसके उपर जितना पोत है वह आप चुका दो । इतना सुनना था कि बाबा ने उस लड़के से कहा " खड़ा तो हो जा बेटा " । बालक खड़ा हो गया । बाबा कीनाराम जी ने जमींदार से कहा कि " ले जहाँ वह बालक खड़ा है, वहाँ की जमीन खुदवा ले और जितना तेरा रुपया हो निकाल ले " । जमींदार बाबा के कहने पर जमीन खुदवाने के लिये एकाएक तो तैयार नहीं हुआ, परन्तु बाबा कीनाराम जी की दृढता के सामने उसे झुकना पड़ा । जमीन खोदी गई । हाथ दो हाथ खोदते न खोदते, वहाँ उपस्थित सभी आश्चर्य चकित हो देखते क्या हैं कि धरती से कलदार ही कलदार निकल रहे हैं । यह दृश्य देखते ही जमींदार समझ गया कि ये कोई सिद्ध महात्मा हैं । वह दौड़कर बाबा का पाँव पकड़ लिया और क्षमा याचना करने लगा । बाबा कीनाराम जी के क्षमा प्रदान करने पर ही उसने बाबा का पाँव छोड़ा । उसने तत्काल उस बालक को पोत मुक्त घोषित कर दिया ।
इस प्रकार लड़के को पोत मुक्त कराकर बाबा ने उसकी माँ को सौंप दिया और अपनी राह चलने लगे । बुढिया ने , जो इतनी देर तक संज्ञाशून्य अवस्था में खड़ी थी, बाबा के चरणों में गिर गई । उसने विनती भरे शब्दों में याचना की " महाराज! यह लड़का आपका है। आपको सौंपती हूँ । आप इसे अपने साथ ले जाँय ।" बाबा ने बुढिया को बहुत प्रकार से समझाया, पर वह नहीं मानी । विवश होकर बाबा कीनाराम जी ने उस बालक को स्वीकार कर लिया और उसे लेकर गिरनार की ओर चल पड़े । वही बालक बाद में बाबा बीजाराम कहलाये और क्रींकुण्ड की जगत प्रसिद्ध गद्दी के तीसरे महंथ हुए ।
महंथ बाबा बीजाराम ने अपने गुरु अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी के दिब्य क्रियाकलापों, चमत्कार भरी घटनाओं, को संकलित कर औघड़ रामकीना कथा के नाम से लिपिबद्ध किया है ।
इसके अलावा बाबा बीजाराम के विषय में छिटपुट , जहाँतहाँ उल्लेख भर मिलता है ।
क्रमशः
यह अंतरजाल पर अघोर पथ पर हिन्दी का पहला अभियान है । अतः आप बधाई के पात्र है । ज्ञान, धर्म, अध्यात्म के अनुशासनों पर जब तक ऐसी सामग्री अंतरजाल पर नहीं आयेगी, विश्व में हिन्दी,हिन्दुस्तान की मूल संस्कृति की जानकारी जब तक इस रूप में नहीं फैलेगी, हिन्दी में अंतरजाल पर काम करनेवालों को वास्तविक श्रेय नहीं मिलेगा । इस रूप में भी आपका कार्य प्रशंसनीय है । मैं तो यह भी निवेदन करूँगा कि आप अघोर पथ पर संपूर्ण अनुभव, साधना विधि, मंत्रादि को यहाँ धीरे-धीरे रखें ताकि अघोर पथ पर विश्वास करने वाले अनुयायियों को संपूर्ण सामग्री मिल सके । इसे पुनः पुस्तकाकार रूप भी दिया जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंलगे रहिए मामा जी.......मैं तो चकित हूँ.....