आदि आश्रम हरिहरपुर
मुगलसराय से पूरब दिशा में जी. टी. रोड पर एक किलोमीटर की दूरी पर अलिनगर नाम का एक शहर है । अलिनगर से एक पक्की सड़क सकलडीहा तक जाती है । सकलडीहा चौमुहानी से उत्तर लगभग एक डेढ़ किलोमीटर पर हरिहरपुर आश्रम अवस्थित है ।
सन् १९५३ ई० में बाबा महड़ौरा श्मशान में साधनारत थे । मनिहरा ग्राम के ठा. देवी सिंह के आग्रह पर मनिहरा ग्राम में तालाब के तट पर फूस की झोपड़ी में कुछ दिन निवास किये थे । उनकी आयु उस समय मात्र सोलह बरस की ही थी । उनकी ख्याति की सुगन्ध निकट के गाँव ताजपुर तक पहुँची, जो मनिहरा से लगभग २ कि. मी. दक्षिण में अवस्थित है । फिर क्या था ताजपुर निवासी ठा० मुक्तेश्वर सिंह, ठा० श्यामधाता सिंह, ठा० कालिका प्रसाद सिंह , ठा० मेवा सिंह आदि कई श्रद्धालु महाप्रभु के दर्शन के लिये मनिहरा पहुँच गये । इन श्रद्धालुओं के अर्जी बिनती करने पर बाबा ताजपुर में निवास हेतु आश्रम बनाना स्वीकार कर लिये परन्तु जब वे लोग सब बाबा के साथ ताजपुर के लिये चले तो रास्ते में हरिहरपुर का वह स्थल दिखाई पड़ा, जहाँ तीन चार बेल और कुछ आम और महुआ के पेड़ खड़े थे । बेल बृक्ष के पास ही एक कुआँ भी था । लोगों ने बताया कि अंधेरा पड़ने के बाद गाँव के निवासी भूत परेत के डर से इस स्थल के समीप से भी नहीं गुजरते हैं । अघोरेश्वर ने स्थल का निरीक्षण कर वहीं रहने का निर्णय सुना दिया । स्थल की सफाई कर सर्वप्रथम फूस का एक घर बना दिया गया और कुएँ का जीर्णोद्धार कर दिया गया ।
इस प्रकार आदि आश्रम हरिहरपुर का निर्माण हो गया । अघोरेश्वर इस आश्रम में लगभग नौ वर्षों तक अनुष्ठान, साधना करते रहे हैं । वे यहाँ से बनारस बराबर जाया करते थे । उन दिनों किसी को भी आश्रम में रात में रहने की आज्ञा नहीं होती थी ।
अघोरेश्वर के हरिहरपुर आश्रम के प्रवास काल में श्रावण मास में आश्रम की छटा निराली रहती थी । भारत भर से बिशिष्ट कोटी के कलाकार आश्रम में आते और अपने नृत्य संगीत से महाप्रभु की आराधना करते थे ।
जनसेवा अभेद आश्रम, चिटक्वाइन, नारायणपुर, जिला जशपुर
जशपुर नगर से दक्षिण दिशा में रायगढ़ रोड पर लगभग ३० किलोमीटर के बाद एक तिराहा आता है । वहाँ से पक्की सड़क पश्चिम में बगीचा जनपद की ओर जाती है । आठ दस किलोमीटर पर नारायणपुर गाँव अवस्थित है । आश्रम इस गाँव के उत्तर में चिटक्वाइन गाँव की सीमा में बना है । इस आश्रम की जमीन एवं खेती योग्य भूमि महाराजा विजयभूषण सिंह जू देव, जशपुरनगर ने दान में दी थी । आश्रम में पूर्ण तान्त्रोक्त बिधि से देवी पीठ का निर्माण अघोरेश्वर ने कराया है । निवास हेतु भवन एवं अन्य साधन जुटाये गये हैं । बाबा ने इस आश्रम में अनेक अनुष्ठान कर इस पीठ को जागृत कर दिया है । यहाँ समय, काल से अनुष्ठान , पूजन करने से सिद्धी लाभ आवश्यम्भावी है ।
ब्रह्मनिष्ठालय, सोगड़ा आश्रम
जशपुर जनपद के उत्तर में लगभग तेरह किलोमीटर पर सुरम्य वादियों में यह आश्रम अवस्थित है । सदाशिव के उपर बैठी हुई भगवती की प्रतिमा पूरे संसार में अकेली है । गुरुघर यन्त्रवत बहुकोणीय है । नीचे साधना हेतु गुफा है । अघोरेश्वर की यह प्रिय साधना स्थली रही है । इस आश्रम में देश के अनेक शिर्षस्थ अधिकारी, नेता, मनस्वी, तपस्वी, सिद्ध, महात्मा एवं साधक अघोरेश्वर का सानिध्य लाभ के लिये आते रहे हैं । बाबा जी ने बहुत काल तक इस आश्रम में निवास किया है, साधना, अनुष्ठान किया है । दक्षिण दिशा के अनेक साधकों को इसी आश्रम में बाबा का अनुग्रह प्राप्त हुआ है । इस लेखक को भी बाबा के चरण में शरण इसी स्थल में प्राप्त हुआ था ।
इस आश्रम के चारों ओर सैकड़ों एकड़ की खेती है । आश्रमवासी खेती करते हैं, खुद भी खाते हैं और आगत, अभ्यागत को भी खिलाते हैं ।
आश्रम के उत्तर में देवीबिहार नामक पर्वत है । इस पर्वत पर अघोरेश्वर ने भैरव जी का स्थान बनाया है, जहाँ बैशाख शुक्ल चतुर्दशी की निशा रात्रि में पूजन होता है और बली दी जाती है ।
अघोरपीठ वामदेवनगर, जशपुर
जशपुरनगर से तीन किलोमीटर पूरब रायगढ़ जाने वाली सड़क पर "गम्हरिया" नामक एक गाँव है । पुरातन काल में इस गाँव में महाराजा विजयभूषण सिंह जू देव का भण्डार हुआ करता था, जिसे उन्होने अघोरेश्वर को दान कर दिया । उसी गम्हरिया गाँव के टीले पर बाबा का आश्रम स्थापित है । अब यह आश्रम जशपुर नगरपालिका की सीमा में आ गया है । शहर से समीप होने के कारण शहरवासी बहुतायत में इस आश्रम का लाभ लेते हैं । श्री मोरार जी देसाई, जब भारत के प्रधान मन्त्री थे, इसी आश्रम में बाबा से भेंट किये थे । आश्रम भवन चतुष्त्रिकोणाकार बना है । मंदिर के ठीक बाहर भैरव जी बिद्यमान हैं । मुख्य भवन के पीछे एक दो औघड़ों की समाधियाँ हैं । आश्रम में एक वैद्यशाला तथा एक औषधि निर्माणशाला है ।
अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम, पड़ाव, वाराणसी
श्री सर्वेश्वरी समूह की स्थापना के पश्चात यह निश्चय हुआ कि संस्था का कुछ कार्यक्रम भी होना चाहिये । बाबा बोले कि देखो, परिवार के लोग भी कुष्ठी बन्धु को घृणा की दृष्टि से देखते हैं, समाज के हर वर्ग के लोग तो उनसे घृणा करते ही हैं । तुम लोग कुष्ठी बन्धुओं की सेवा करो। उनका उपचार करो । उन्हें आरोग्य करो ।
बाबा उस समय हाजी सुलेमान के बगीचे में रह रहे थे । कुष्ठ सेवा के लिये सेवाश्रम बनाना था अतः भूमि की आवश्यकता पड़ी । बाबा के एक भक्त ईश्वरगंगी के श्री कमाल साहू जी की नौ डिसमिल भूमि गँगा जी के उस पार पड़ाव नामक स्थान पर थी , जिसे वे अघोरेश्वर को दान करना चाहते थे । अघोरेश्वर को वह भूमि पसन्द आ गयी । श्री कमाल साहू जी के प्रयत्न से आसपास की कुछ और जमीन प्राप्त हो गयी । दो मास के भीतर कुष्ठ सेवाश्रम के लिये आउटडोर विभाग का भवन बनकर तैयार हो गया । दिनांक १० मई सन् १९६२ ई० को भवन का उदघाटन हुआ और रोगियों की चिकित्सा का कार्य भी शुरु हो गया । बाद में धीरे धीरे करके साठ बिस्तरों वाला विशाल अंतर्कक्ष बनकर तैयार हो गया, जहाँ कुष्ठ रोगियों के लिये हर आधुनिक सुविधा की व्यवस्था की गई ।
कुष्ठ सेवाश्रम का बाद में बहुत विस्तार हुआ । आश्रम परिसर में अघोरेश्वर के लिये सर्वेश्वरी निवास बना । सर्वेश्वरी मंदिर बना । श्री सर्वेश्वरी समूह का प्रधान कार्यालय लाया गया । शिशुओं के लिये " अवधूत भगवान राम नर्सरी विद्यालय " की स्थापना हुई । अतिथि कक्ष बना । अघोरी प्रेस की स्थापना हुई । औषधि निर्माण शाला बना ।
यह आश्रम अघोरेश्वर का स्थायी निवास बन गया ।
अन्य आश्रम
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, राय बरेली ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, रेणुकूट, जिला मिरजापुर ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, बलरामपुर, गोंडा ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, भुजौना, बिलथरा रोड, बलिया ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, डाल्टेनगंज, पलामू ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, नगर उँटारी, पलामू ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, धनबाद ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, लेक रोड, राँची ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, मानगो , जमशेदपुर ।श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, सिमडेगा , राँची ।
श्री सर्वेश्वरी समूह प्रार्थनागृह, गुमला, राँची ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, घाघरा, राँची ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, सोनुमूड़ा, रायगढ़, छत्तीसगढ़ ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, भाटापारा, रायपुर ।
श्री सर्वेश्वरी समूह आश्रम, जगदलपुर, बस्तर ।
इसके अलावा भारत के अन्य अनेक प्रदेशों में भी श्री सर्वेश्वरी समूह की शाखाएँ, आश्रम स्थापित हैं ।
क्रमशः
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प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंयहां आपको पाकर खुशी हुई । आपके मार्गदर्शक लेख से जानकारी बढ़ेगी । सभी कुछ संग्रहणीय है ।
-आशुतोष मिश्र ,रायपुर ।