अघोरेश्वर की लीला यत्र तत्र सर्वत्र शिष्यों, श्रद्धालुओं, भक्तों के हृदय में बिखरी पड़ी हैं । कुछ एक को शब्दों की माला में पिरोकर ज्ञानीजनों ने जन सामान्य के लिये सुलभ करा दिया है, परन्तु बहुत कुछ अभी बाकी है । अनेक लोग बाबा के सम्पर्क में आकर नाना प्रकार की अनुभूति से दो चार हुए हैं । बहुत कुछ देखा है, सुना है और उनकी प्रेरणा से किया भी है । बाबा प्रत्यक्ष में कुछ करते कभी नहीं दिखते थे । सब कुछ सामान्य ढ़ंग से होता रहता था, जिसे आप चमत्कार कहें या और कुछ और । बाबा की किशोरावस्था में जो लोग सम्पर्क में आये, उनमें से कुछ से यहाँ पर हम परिचय पाने का प्रयास करेंगे ।
बाबा कृष्णाराम अघोरी
अघोरेश्वर के प्रथम सहचर के रुप में आपकी चर्चा बहुत ही सीमित रुप में आती है । आप बहुत ही थोड़े समय तक ही बाबा के साथ देखे गये थे । आप उड़िया भाषी थे । उत्कल प्रदेश से दूर बनारस में किशोर अवधूत के साधनाकाल में उनकी सेवा में होना, साबित करता है कि कृष्णा राम जी सिद्धावस्था प्राप्त अघोरी थे । बाबा कृष्णा राम जी के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है क्योंकि आप हिन्दी नहीं बोलते थे, या शायद हिन्दी नहीं जानते थे, अतः अन्य श्रद्धालु, भक्तों से आपका सम्पर्क नहीं हो पाया । आपके नाम के साथ राम लगा है अतः निश्चित रुप से आप किनारामी परम्परा के औघड़ थे । किशोर अवधूत की गुण्डी तथा बगवाँ यात्रा के समय वहाँ के लोगों ने आपको देखा था । उनकी स्मृति में आप भाषा के कारण ही जगह पा गये । बनारस के भक्तों ने आपकी कभी चर्चा नहीं की है । उक्त एक यात्रा के बाद आपको कभी, कहीं, किसी ने नहीं देखा ।
श्री केदार सिंह उर्फ फोकाबीर
श्री केदार सिंह जी, जिन्हें अघोरेश्वर प्यार से फोंकाबीर कहते थे, बाबा के समर्पित भक्तों में अन्यतम थे । आपका निवास ईश्वरगंगी, बनारस में था । अधिक वय वाले फोकाबीर को बाबा ने अपनी किशोरावस्था में, जब वे कठिन साधना में लगे थे, सखा के रुप में स्वीकार किया था । श्री केदार सिंह जी और अघोरेश्वर बहुत काल तक साथ साथ रहे हैं । उन दिनों आप दोनों की सवारी सायकिल हुआ करती थी । फोकाबीर की सायकिल की पिछली सीट पर बैठकर बाबा बहुत घूमें हैं । केदार सिंह युवावस्था तक प्रकृति से उदण्ड माने जाते थे । स्कूल में उनका जी नहीं लगता था । ठाकुर होने का दम्भ तो उनमें जीवनपर्यन्त रहा । अघोरेश्वर के सानिध्य में आने के पश्चात श्री केदार सिंह में जो परिवर्तन उनके परिचितों, जानकारों ने देखा वह आश्चर्यजनक था । लोहा जैसे पारस का स्पर्ष पाकर सोना बन चुका था । श्री दयानारायण पाण्डेय जी ने श्री केदार सिंह का साक्षात्कार के आधार पर " औघड़ की गठरी" नामक एक पुस्तक का प्रणयन किया है, जिसमें हम अघोरेश्वर के इस कृपापात्र के भीतर के भावों के विशाल भंडार से साक्षात्कार कर सकते हैं । इस पुस्तक में फोकाबीर जी ने उन्मुक्त भाव से अपने गुरु अघोरेश्वर के विषय में विस्तार से बतलाया है ।
श्री केदार सिंह जी की धर्मपत्नि का नाम श्रीमति लक्ष्मी देवी है । अघोरेश्वर लक्ष्मी देवी जी को अपना पुत्री मानते थे । कई अवसरों पर लक्ष्मी देवी के मानसिक संकल्पों को अघोरेश्वर ने परोक्ष से जानकर भी पूर्ण किया है । लक्ष्मी देवी पति के प्रति पूर्णतया समर्पित नारी थीं । इस दम्पत्ति की करुणा की मिशाल नहीं मिलती । एक भक्त की सन्तान विव्हलता देखकर अपने गर्भ का भ्रूण दान कर उसकी बंध्या पत्नि को पुत्रवती बनाकर स्वयं निःसंत्तान की स्थिति का वरन करना त्याग की पराकाष्ठा है ।
श्री केदार सिंह जी का देहावसान ६ जनवरी १९९१ को हुआ था । अघोरेश्वर उस समय अमेरिका में अपना इलाज करवा रहे थे । अपने सखा, शिष्य श्री केदार सिंह जी की अंतिम यात्रा हेतु अघोरेश्वर बिना किसी को सूचना दिये अमेरिका से आ जाते हैं । यह गुरु अघोरेश्वर भगवान राम जी की प्रत्यक्ष सर्वज्ञता है, जो उन्हें ६ जनवरी १९९१ को बनारस ले आती है ।
क्रमशः
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