पुरातन काल में होम व हवन भिन्नार्थक हुआ करते थे । किसी पूजा अनुष्ठान, किसी सामाजिक कर्मकाण्ड, किसी जन बहुल उत्सव की समाप्ति की घोषणा के समय होम अनुष्ठित करने की प्रथा थी । होम में मुख्यतः समिधा की आहूति दी जाती थी । हवन होम से अलग दूसरे प्रकार की क्रिया होती थी । वैदिक देवी देवताओं को तृप्त करने तथा उनकी कृपा प्राप्ति के निमित्त यह कार्य किया जाता था । विभिन्न देवताओं के लिये हवन में समिधा के अलावा अलग अलग वस्तुओं की आहुति दी जाती थी । इसमें समिधा के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ, तण्डुल, गोधूम, पकवान, चन्दन काष्ठ, धूप, धूनी, पशु मुण्ड, रक्त, माँस, विजित शत्रु का सिर, रक्त, माँस आदि की आहुति दी जाती थी ।
होम तो आज भी किया जाता है । सत्यनारायण कथा के अंत में, गणेशपूजा , दूर्गा पूजा, गृहारंभ के समय वास्तु पूजा, गृह प्रवेश के समय की पूजा आदि सब समय अंत में होम होता है । लोग मानते हैं कि होम के सुगन्ध भरे धुआँ मर्त्यलोक से उर्घ्वलोक में उत्थित होगा और वायु और आकाश विभिन्न गंधों से परिपूर्ण हो जायेंगे जिससे पूजित देवता तृप्त होकर कृपा करेंगे ।
तन्त्र ग्रंथों में हवन का वर्णन विशद रुप से आता है । किसी भी मन्त्र का , देवता का अनुष्ठान की पूर्णता तभी होती है जब निश्चित मात्रा में जप किया जाय, जप का दशाँश हवन हो तथा हवन का दशाँश ब्राह्मण भोजन, जिसे आजकल भंडारा के रुप में किया जाता है , करना होता है । मन्त्र , देवता के अनुसार हवन में आहुति की मात्रा एवं सामग्री निश्चित होती है ।
अघोरपथ में भी हवन किया जाता है । अघोरपथ में हवन के बारे में निर्दिष्ठ बिधि की लिखित जानकारी तो अप्राप्य है, हाँ अघोरेश्वर भगवान राम जी के प्रवचनों में और साधकों ने अवधूत, अघोरेश्वर को जैसा हवन करते देखकर विवरण छिटपुट रूप से दिया है, उतनी ही जानकारी प्राप्त होती है । यह विवरण हवन के सर्वज्ञात स्वरुप के जैसा ही है अतः उसकी चर्चा करना पुनरुक्ति ही होगी ।
होम तो आज भी किया जाता है । सत्यनारायण कथा के अंत में, गणेशपूजा , दूर्गा पूजा, गृहारंभ के समय वास्तु पूजा, गृह प्रवेश के समय की पूजा आदि सब समय अंत में होम होता है । लोग मानते हैं कि होम के सुगन्ध भरे धुआँ मर्त्यलोक से उर्घ्वलोक में उत्थित होगा और वायु और आकाश विभिन्न गंधों से परिपूर्ण हो जायेंगे जिससे पूजित देवता तृप्त होकर कृपा करेंगे ।
तन्त्र ग्रंथों में हवन का वर्णन विशद रुप से आता है । किसी भी मन्त्र का , देवता का अनुष्ठान की पूर्णता तभी होती है जब निश्चित मात्रा में जप किया जाय, जप का दशाँश हवन हो तथा हवन का दशाँश ब्राह्मण भोजन, जिसे आजकल भंडारा के रुप में किया जाता है , करना होता है । मन्त्र , देवता के अनुसार हवन में आहुति की मात्रा एवं सामग्री निश्चित होती है ।
अघोरपथ में भी हवन किया जाता है । अघोरपथ में हवन के बारे में निर्दिष्ठ बिधि की लिखित जानकारी तो अप्राप्य है, हाँ अघोरेश्वर भगवान राम जी के प्रवचनों में और साधकों ने अवधूत, अघोरेश्वर को जैसा हवन करते देखकर विवरण छिटपुट रूप से दिया है, उतनी ही जानकारी प्राप्त होती है । यह विवरण हवन के सर्वज्ञात स्वरुप के जैसा ही है अतः उसकी चर्चा करना पुनरुक्ति ही होगी ।
क्रमश:
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