शुक्रवार, मार्च 26, 2010

अघोर साधना के मूल तत्वः गोप्य पूजाः श्मशान क्रिया

श्मशान शब्द से ही जलते हुए शव से चतुर्दिग फैलती चिराँध, श्रृगालों के द्वारा खोदकर निकाली गई मानव अँगों को चिचोड़ते गिद्धों की टोलियाँ, यहाँ वहाँ
हवा के हाथों बिखरे जले हुए मानव तन की भष्मी के अँश, यत्र तत्र पड़े हड्डियों और माँस के छिन्न खंड, रह रहकर आती ऊलूकों के धूत्कार, आदि दृष्य अनायास ही आँखों के सामने आकर जुगुप्सा जगाने लगते हैं । श्मशान मानव मनोविकार द्वय "भय" और  "घृणा" के चरमोत्कर्ष की स्थली है । लोग अपने प्रियजनों की शव यात्रा में अन्य अनेक सम्बन्धियों के साथ श्मशान में कम समय के लिये आते हैं और प्राण रहित देह को अग्नि या धरती के सिपुर्द कर लौट जाते हैं । जन सामान्य का श्मशान से इतना ही सम्बन्ध है । यही श्मशान अघोर पथ के साधकों, सिद्धों, अघोराचार्यों, साधुओं की साधना स्थली, निवास स्थली रहती रही है । बहुत काल तक जंगल के भीतर निर्मित किसी मंदिर के गर्भगृह के शून्यायतन में या किसी महाश्मशान के भीतरी भाग में किसी समाधी को शय्या बनाकर औघड़ साधक साधना में निमग्न रहते आये हैं ।

" औघड़ के नौ घर, बिगड़े तो शव घर ।"

साधना की पराकाष्ठा तभी होती है जब पूर्ण इन्द्रीय जय या मनोविकारों पर जय सिद्ध हो जाता है । इस शरीर में नौ द्वार होते हैं । २ आँखें, २ कान, २ नाक, १ मुँह, १ शिश्न या योनि तथा १ गुदा । इनको वश में कर लेने से आध्यात्मिक उन्नति की गति तीव्र हो उठती है । श्मशान क्रियाओं के द्वारा इनपर विजय पाना सरल हो जाता है ।

कमोवेश श्मशान साधना भारत में अघोरियों के अलावा अन्य कई सम्प्रदायों में भी की जाती है । इसका चलन पूर्वी भारत में ज्यादा दिखता है । आसाम, पूर्वी बिहार या मैथिल प्रदेश, बंगाल तथा उड़ीसा के पूर्वी भाग में, आमावश्या की निशारात्री में अनेक साधक महाश्मशानों में साधनारत रहते हैं । अन्य भू भाग में भी छिटपुट रुप से श्मशान साधक फैले हुए हैं ।

आसाम का कामरुप प्रदेश का तन्त्र साधना स्थली के रुप में बहुत नाम रहा है । पुरातन काल की कथा है, इस प्रदेश में मातृ सत्तात्मक समाज व्यवस्था प्रचलित थी । कामरुप की स्त्रियाँ तन्त्र साधना में बड़ी ही प्रवीण होती थीं । बाबा आदिनाथ, जिन्हें कुछ विद्वान भगवान शंकर  मानते हैं, के शिष्य बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी भ्रमण के क्रम में कामरुप गये थे । बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी कामरुप की रानी के अतिथि के रुप में महल में ठहरे थे । बाबा मत्स्येन्द्रनाथ, रानी जो स्वयं भी तंत्रसिद्ध थीं, के साथ  लता साधना में इतना तल्लीन हो गये थे कि वापस लौटने की बात ही भूल बैठे थे । बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी को वापस लौटा ले जाने के लिये उनके शिष्य बाबा गोरखनाथ जी को कामरुप की यात्रा करनी पड़ी थी । "जाग मछेन्दर गोरख आया " उक्ति इसी सन्दर्भ में बाबा गोरखनाथ जी द्वारा कही गई थी । कामरुप में श्मशान साधना व्यापक रुप से प्रचलित रहा है । इस प्रदेश के विषय में अनेक दन्तकथाएँ प्रचलित हैं । बाहर से आये युवाओं को यहाँ की महिलाओं द्वारा भेड़ , बकरी बनाकर रख लिया जाना एक ऐसी ही दन्त कथा है ।

बंगाल में श्मशान साधना का प्रसिद्ध स्थल क्षेपा बाबा की साधना स्थली तारापीठ का महाश्मशान रहा है । आज भी अनेक साधक श्मशान साधना के लिये कुछ निश्चित तिथियों में  तारापीठ के महाश्मशान में जाया करते हैं । महर्षि वशिष्ठ से लेकर बामाक्षेपा तक अघोराचार्यों की एक अविच्छिन्न धारा यहाँ तारापीठ में प्रवहमान रही है ।

आनन्दमार्ग बिहार और बंगाल की मिलीजुली माटी की सुगन्ध है । प्रवर्तक श्री प्रभातरंजन सरकार उर्फ आनन्दमूर्ति जी थे । आनन्दमार्ग के साधु जो अवधूत कहलाते हैं श्मशान साधना करते हैं । इनकी झोली में नरकपाल रहता ही है । ये अमावश्या की रात्री में साधना हेतु श्मशान जाते है । श्मशान साधना से इन साधुओं को अनेक प्रकार की सिद्धी प्राप्त है ।

 श्मशान के बारे में अघोरेश्वर भगवान राम जी ने अपने शिष्यों को बतलाया थाः
" श्मशान से पवित्र स्थल और कोई स्थान हो ही नहीं सकता । न मालूम इस श्मशान भूमि में प्रज्वलित अग्नि सदियों से कितने जीवों के प्राणरहित देहों की आहुति लेती आ रही है । न मालूम कितने महान योद्धाओं, राजाओं, महाराजाओं, सेठ साहूकारों, साधुओं सज्जनों, चोरों मुर्खों, गर्व से फूले न समाने वाले नेताओं और विद्वतजनों की देहों की आहुतियाँ श्मशान में प्रज्वलित अग्नि के रुप में महाकाल की जिव्हा में भूतकाल में पड़ी हैं, वर्तमान काल में पड़ रही हें और भविष्य काल में पड़ती रहेंगी । कितने घरों और नगरों की अग्नि शाँत हो जाती है किन्तु महाश्मशान की अग्नि सदैव प्रज्वलित रहती है, प्राणरहित लोगों के देहों की आहुति लेती रहती है । जिस प्रकार योगियों और अघौरेश्वरों का स्वच्छ और निर्मल हृदय जीवों के प्राण का आश्रय स्थल बना रहता है, ठीक उसी प्रकार श्मशान प्राण रहित जीवों के देह को आश्रय प्रदान करता है । उससे डरकर भाग नहीं सकते । पृथ्वी में, आकाश में, पाताल में, कहीं भी कोई स्थान नहीं है जहाँ छिपकर तुम बच सकते हो ।"
 

अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी की एक कथा में जो , उनके प्रथम शिष्य बाबा बीजाराम द्वारा लिखी गई तथा श्री सर्वेश्वरी समूह द्वारा प्रकाशित ग्रँथ " औघड़ रामकीना कथा" में संगृहित है श्मशान साधना का विवरण दिया गया है । कथा कुछ इस प्रकार हैः

" मुँगेर जनपद में गंगा के किनारे श्मशान के पास एक कुटी में बाबा कीनाराम वर्षावास कर रहे थे । मध्यरात्रि की बेला थी । पीले रंग के माँगलिक वस्त्र और खड़ाऊँ पहने, सुन्दर केशवाली  एक योगिनी ने आकाश की ओर से उतरती हुई अघोराचार्य महाराज कीनाराम जी के निकट उपस्थित होकर प्रणाम निवेदन किया । महाराज श्री के परिचय पूछने पर योगिनी ने बतलाया कि वह गिरनार की काली गुफा की निवासिनी है । प्रेरणा हई, आकर्षण हुआ और वह आकाशगमन करते हुए महाराज जी की कुटी  पर आ पहुँची । योगिनी ने अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी से निवेदन किया किः " जो साध्य है मेरा, उसे आप क्रियाओं द्वारा क्रियान्वित करें, जिससे मुझमें जो कमी है उसकी पूर्णता को प्राप्त करुँ ।"
श्मशान में एक शव के, जिसे परिजन अत्यधिक बर्षा के कारण उपेक्षित छोड़ गये थे, गंगा की कछार में मूँज की रस्सियों से, खूंटी गाड़कर, हाथ , पाँव को  बाँध दिया गया । शव को लाल वस्त्र ओढ़ाकर मुख खोल दिया गया । योगिनी और बाबा कीनाराम आसनस्थ हुए । महाराज मन्त्र उच्चारण करते रहे और योगिनी अभिमंत्रित कर धान का लावा शव के खुले मुख में छोड़ती रहीं  । थोड़े ही काल तक यह क्रिया हुई होगी कि बड़े जोर का अट्टहास करके पृथ्वी फूटी और नन्दी साँढ़ पर बैठे हुए सदाशिव, श्मशान के देवता, उपस्थित हुए । बड़े मधुर स्वर में बोलेः " सफल हो सहज साधना । दीर्घायु हो । कपालालय में, ब्रह्माण्ड में  सहज रुप से प्रविष्ठ होने का आप दोनों का मार्ग प्रशस्त है । याद रखना,  अनुकूल समय में मैं उपस्थित होता रहूँगा ।" योगिनी और महाराज श्री कीनाराम जी ने शव से उतरकर प्रणाम किया । श्मशान देवता देखते देखते आकाश में विलीन हो गये । एक कम्पन हुआ और शव पत्थर के सदृश हो गया ।

योगिनी तृप्त हुई और महाराज श्री को प्रणाम कर आकाशगमन करते हुए पश्चिम दिशा की ओर चलीं गई ।"

क्रमशः

9 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञानवर्धक. परन्तु आजकल के श्मशान क्या साधना के लिए उपयुक्त होंगे?

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  2. श्मशान साधना एक अत्यंत ही गोपनीय विषय है । समर्थ गुरु श्मशान की कुञ्जी देते हैं तभी शिष्य को श्मशान साधना का अधिकार मिलता है अन्यथा श्मशान में कुछ नहीं पाया जा सकता । श्मशान आज भी साधना के लिये उपयुक्त हैं ।

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  3. श्मशान के दार्शनिक महत्त्व के बारे में भी लिखे! महाभारत ग्रन्थ में, शिव कहते हैं की श्मशान भूमि से पवित्र और कोई भूमि नहीं, इस पर कृपया कर के प्रकाश डालें!

    महाभारत पर्व १३ पाठ १२८ के श्लोक १६-१७ में लिखा हैं:

    मेध्यान्वेषी महीं कृत्स्नां विचरामि निशास्व अहम
    न च मेध्यतरं किं चिच छमशानाथ इह विथ्यते
    तेन मे सर्ववासानां शमशाने रमते मनः
    नयग्रॊधशाखा संछन्ने निर्भुक्त सरग्वि भूषिते

    उपरोक्त पर कुछ टीका टिपण्णी करने की कृपा करे!

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  4. krapa kar ke dada kinaramji ke baare me purna mahiti pradan kare.

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  5. krapa kar ke dada kinaramji ke baare me purna mahiti pradan kare.

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  6. एक गृहस्थी के लिए कौन सी साधना हो सकती है जिससे वो कंटक जीवन से उबार सके.

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  7. sadha ke bare jo katha kahi hayi hai oh sahi hai..
    maa kamakhya sansar ki chudha mani hai..
    isase pavitra pith koi nahi hai..

    triveni shankar mishra

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