चित्रकूट
अघोर पथ के अन्यतम आचार्य, भगवत स्वरुप दत्तात्रेय जी की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिये तीर्थस्थल है । औघड़ों की कीनारामी परम्परा का उत्स यहीं से हुआ माना जाता है । माता अनुसूया जी का आश्रम तथा शरभंग ॠषि जो एक सिद्ध अघोराचार्य थे, का आश्रम, अघोर साधकों के लिये साधना की भूमि प्रदान करते हैं । यहाँ का स्फटिक शिला नामक महा श्मशान तथा पार्श्व में स्थित घोरा देवी का मन्दिर हमेशा से अघोर साधकों को आकर्षित करता रहा है । कहा जाता है कि स्फटिक शिला श्मशान में भगवान राम चन्द्र जी ने माता सीता का भगवती रुप में पूजन किया था और उसी उपलब्धि से वे असुरों का विनाश कर भारत में रामराज्य स्थापित करने में सफलमनोरथ हो सके थे ।
कवि रहीम खानखाना ने शासक का कोप भाजन बनने पर अपना अज्ञातवास काल यहीं पर बिताया था और कहा थाः
"चित्रकूट में रमि रहै रहिमन अवध नरेस ।
जापै विपदा पड़त है सो आवत यहि देस ।।"
अघोरेश्वर भगवान राम जी ने कई बार चित्रकूट की यात्रा की थी ।
प्रभासपत्तन
कलियुग के प्रारम्भ में यादवों ने आपस में लड़कर इसी स्थान पर अपने कुल का नाश कर लिया था । बाद में बाहरी आक्रान्ताओं ने यहाँ पर स्थित सोमनाथ मन्दिर की सम्पत्ति लूटने की गरज से अनेक बार आक्रमण कर व्यापक नर संहार किया । भयंकर नरसंहार होने के कारण यह एक महा श्मशान है । इस श्मशान में एक औघड़ आश्रम प्रतिष्ठित है जहाँ रहकर अनेक साधक तप करते रहते हैं । यहाँ भगवान सोमनाथ विराजते हैं ।
अघोरीकिला
बिहार में चोपन शहर के पास एक बहुत पुराने किले का अवशेष आज भी विद्यमान है । यह कालिंजर का किला पंद्रहवीं सदी से ही निर्जन प्राय रहता आया है । तभी से इस निर्जन किले को अघोरियों ने अपनी साधनास्थली बना रखा है । अभी कुछ वर्ष पहले तक एक सिद्ध अघोराचार्य की कीर्ति सुनने में आती थी । आजकल कुछ एक साधक यहाँ रहकर अपनी साधना में लगे रहते हैं । कुछ भैरवियों की उपस्थिति के भी प्रमाण मिलते हैं ।
जगन्नाथ पुरी
जगत प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर और विमला देवी मन्दिर, जहाँ सती का पाद खण्ड गिरा था, के बीच में एक चक्र साधना वेदी अवस्थित है । यह वेदी वशिष्ठ वेदी के नाम से प्रसिद्ध है । इसके अलावा पुरी का स्वर्गद्वार श्मशान एक पावन अघोर स्थल है । इस श्मशान के पार्श्व में माँ तारा मन्दिर के खण्डहर में ॠषि वशिष्ठ के साथ अनेक साधकों की चक्रार्चन करती हुई प्रतिमाएँ स्थापित हैं ।
श्री जगन्नाथ मन्दिर में भी श्रीकृष्ण जी को शुभ भैरवी चक्र में साधना करते दिखलाया गया है ।
कालीमठ
हिमालय तो सदा दिन से साधकों में आकर्षण जगाता आया है । कितने, किस कोटी के,और कैसे कैसे साधक हिमालय में साधनारत हैं कुछ कहा नहीं जा सकता । नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है । यहाँ अनेक साधक रहते हैं । कालीमठ में अघोरेश्वर भगवान राम जी ने एक बहुत बड़ा खड्ग स्थापित किया है । यहाँ से ५००० हजार फीट उपर एक पहाड़ी पर काल शिला नामक स्थल है जहाँ मनुष्य और पशु कठिनाई से पहुँच पाते हैं । कालशिला में भी अघोरियों का वास है ।
मदुरई
दक्षिण भारत में औघड़ों को ब्रह्मनिष्ठ कहा जाता है । यहाँ कपालेश्वर का मन्दिर है साथ ही ब्रह्मनिष्ठ लोगों का आश्रम भी है । आश्रम के प्राँगण में एक अघोराचार्य की मुख्य समाधि है । और भी समाधियाँ हैं । मन्दिर में कपालेश्वर की पूजा औघड़ विधि विधान से की जाती है ।
उपरोक्त स्थलों के अलावा अन्य जगहों पर भी जैसे रामेश्वरम, कन्याकुमारी, मैसूर, हैदराबाद, बड़ौदा, बोधगया आदि अनेक औघड़, अघोरेश्वर लोगों की साधना स्थली, आश्रम, कुटिया पाई जाती है ।
कतिपय अन्य देशों में भी औघड़ , अघोरेश्वर ने भ्रमण के क्रम में जाकर मौज में आकर अपना निवास बना लिया है ।
नेपाल
नेपाल में तराई के इलाके में कई गुप्त औघड़ स्थान पुराने काल से ही अवस्थित हैं । अघोरेश्वर भगवान राम जी के शिष्य बाबा सिंह शावक राम जी ने काठमाण्डु में अघोर कुटी स्थापित किया है। उन्होने तथा उनके बाद बाबा मंगलधन राम जी ने समाज सेवा को नया आयाम दिया है। कीनारामी परम्परा के इस आश्रम को नेपाल में बड़ी ही श्रद्धा से देखा जाता है ।
अफगानिस्थान
अफगानिस्तान के पूर्व शासक शाह जहीर शाह के पूर्वजों ने काबुल शहर के मध्य भाग में कई एकड़ में फैला जमीन का एक टुकड़ा कीनारामी परम्परा के संतों को दान में दिया था । इसी जमीन पर आश्रम, बाग आदि निर्मित हैं । औघड़ रतन लाल जी यहाँ पीर के रुप में आदर पाते हैं । उनकी समाधि तथा अन्य अनेक औघड़ों की समाधियाँ इस स्थल पर आज भी श्रद्धा नमन के लिये स्थित हैं ।
क्रमशः
अघोर पथ के अन्यतम आचार्य, भगवत स्वरुप दत्तात्रेय जी की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिये तीर्थस्थल है । औघड़ों की कीनारामी परम्परा का उत्स यहीं से हुआ माना जाता है । माता अनुसूया जी का आश्रम तथा शरभंग ॠषि जो एक सिद्ध अघोराचार्य थे, का आश्रम, अघोर साधकों के लिये साधना की भूमि प्रदान करते हैं । यहाँ का स्फटिक शिला नामक महा श्मशान तथा पार्श्व में स्थित घोरा देवी का मन्दिर हमेशा से अघोर साधकों को आकर्षित करता रहा है । कहा जाता है कि स्फटिक शिला श्मशान में भगवान राम चन्द्र जी ने माता सीता का भगवती रुप में पूजन किया था और उसी उपलब्धि से वे असुरों का विनाश कर भारत में रामराज्य स्थापित करने में सफलमनोरथ हो सके थे ।
कवि रहीम खानखाना ने शासक का कोप भाजन बनने पर अपना अज्ञातवास काल यहीं पर बिताया था और कहा थाः
"चित्रकूट में रमि रहै रहिमन अवध नरेस ।
जापै विपदा पड़त है सो आवत यहि देस ।।"
अघोरेश्वर भगवान राम जी ने कई बार चित्रकूट की यात्रा की थी ।
प्रभासपत्तन
कलियुग के प्रारम्भ में यादवों ने आपस में लड़कर इसी स्थान पर अपने कुल का नाश कर लिया था । बाद में बाहरी आक्रान्ताओं ने यहाँ पर स्थित सोमनाथ मन्दिर की सम्पत्ति लूटने की गरज से अनेक बार आक्रमण कर व्यापक नर संहार किया । भयंकर नरसंहार होने के कारण यह एक महा श्मशान है । इस श्मशान में एक औघड़ आश्रम प्रतिष्ठित है जहाँ रहकर अनेक साधक तप करते रहते हैं । यहाँ भगवान सोमनाथ विराजते हैं ।
अघोरीकिला
बिहार में चोपन शहर के पास एक बहुत पुराने किले का अवशेष आज भी विद्यमान है । यह कालिंजर का किला पंद्रहवीं सदी से ही निर्जन प्राय रहता आया है । तभी से इस निर्जन किले को अघोरियों ने अपनी साधनास्थली बना रखा है । अभी कुछ वर्ष पहले तक एक सिद्ध अघोराचार्य की कीर्ति सुनने में आती थी । आजकल कुछ एक साधक यहाँ रहकर अपनी साधना में लगे रहते हैं । कुछ भैरवियों की उपस्थिति के भी प्रमाण मिलते हैं ।
जगन्नाथ पुरी
जगत प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर और विमला देवी मन्दिर, जहाँ सती का पाद खण्ड गिरा था, के बीच में एक चक्र साधना वेदी अवस्थित है । यह वेदी वशिष्ठ वेदी के नाम से प्रसिद्ध है । इसके अलावा पुरी का स्वर्गद्वार श्मशान एक पावन अघोर स्थल है । इस श्मशान के पार्श्व में माँ तारा मन्दिर के खण्डहर में ॠषि वशिष्ठ के साथ अनेक साधकों की चक्रार्चन करती हुई प्रतिमाएँ स्थापित हैं ।
श्री जगन्नाथ मन्दिर में भी श्रीकृष्ण जी को शुभ भैरवी चक्र में साधना करते दिखलाया गया है ।
कालीमठ
हिमालय तो सदा दिन से साधकों में आकर्षण जगाता आया है । कितने, किस कोटी के,और कैसे कैसे साधक हिमालय में साधनारत हैं कुछ कहा नहीं जा सकता । नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है । यहाँ अनेक साधक रहते हैं । कालीमठ में अघोरेश्वर भगवान राम जी ने एक बहुत बड़ा खड्ग स्थापित किया है । यहाँ से ५००० हजार फीट उपर एक पहाड़ी पर काल शिला नामक स्थल है जहाँ मनुष्य और पशु कठिनाई से पहुँच पाते हैं । कालशिला में भी अघोरियों का वास है ।
मदुरई
दक्षिण भारत में औघड़ों को ब्रह्मनिष्ठ कहा जाता है । यहाँ कपालेश्वर का मन्दिर है साथ ही ब्रह्मनिष्ठ लोगों का आश्रम भी है । आश्रम के प्राँगण में एक अघोराचार्य की मुख्य समाधि है । और भी समाधियाँ हैं । मन्दिर में कपालेश्वर की पूजा औघड़ विधि विधान से की जाती है ।
उपरोक्त स्थलों के अलावा अन्य जगहों पर भी जैसे रामेश्वरम, कन्याकुमारी, मैसूर, हैदराबाद, बड़ौदा, बोधगया आदि अनेक औघड़, अघोरेश्वर लोगों की साधना स्थली, आश्रम, कुटिया पाई जाती है ।
कतिपय अन्य देशों में भी औघड़ , अघोरेश्वर ने भ्रमण के क्रम में जाकर मौज में आकर अपना निवास बना लिया है ।
नेपाल
नेपाल में तराई के इलाके में कई गुप्त औघड़ स्थान पुराने काल से ही अवस्थित हैं । अघोरेश्वर भगवान राम जी के शिष्य बाबा सिंह शावक राम जी ने काठमाण्डु में अघोर कुटी स्थापित किया है। उन्होने तथा उनके बाद बाबा मंगलधन राम जी ने समाज सेवा को नया आयाम दिया है। कीनारामी परम्परा के इस आश्रम को नेपाल में बड़ी ही श्रद्धा से देखा जाता है ।
अफगानिस्थान
अफगानिस्तान के पूर्व शासक शाह जहीर शाह के पूर्वजों ने काबुल शहर के मध्य भाग में कई एकड़ में फैला जमीन का एक टुकड़ा कीनारामी परम्परा के संतों को दान में दिया था । इसी जमीन पर आश्रम, बाग आदि निर्मित हैं । औघड़ रतन लाल जी यहाँ पीर के रुप में आदर पाते हैं । उनकी समाधि तथा अन्य अनेक औघड़ों की समाधियाँ इस स्थल पर आज भी श्रद्धा नमन के लिये स्थित हैं ।
क्रमशः
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जवाब देंहटाएंअघोर पथ के अन्यतम आचार्य, भगवत स्वरुप दत्तात्रेय जी की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिये तीर्थस्थल है
जवाब देंहटाएंjai baba bhagwaan ram ki jai
nice post