मंगलवार, अक्तूबर 13, 2009

क्रींकुण्ड स्थल के ग्यारहवें महंथ अघोराचार्य बाबा राजेश्वर राम जी

बाबा कीनाराम जी ने सन् १७७१ ई० में कहा था कि क्रींकुण्ड आश्रम के ग्यारह महंथ होंगे, फिर वे स्वयं आयेंगे । उक्त वाणी के अनुसार बाबा राजेश्वर राम जी क्रींकुण्ड गद्दी के ग्यारहवें व अंतिम महंथ थे । बाबा राजेश्वर राम जी का जन्म वाराणसी के उच्च राजन्यवंश में हुआ था । आप दर्शनीय मूर्ति थे । उच्च ललाट, अजान बाहू, हृष्ठपुष्ठ शरीर, और निर्मल नीली आँखें थीं । आप अजगर वृत्ति के महात्मा थे । आप ज्यादातर क्रींकुण्ड आश्रम के दालान में अखण्डधूनी की ओर निर्निमेश दृष्टि से ताकते हुए पड़े रहते थे । आपको देहभान नहीं रहता था । वस्त्र न सम्भाल पाने के कारण प्रायः नग्नावस्था ही होती थी । आश्रम के देखरेख का जिम्मा आपके गुरुभाई बाबा आसूराम जी के उपर था । किसी किसी दर्शनार्थी को देखते ही बाबा गालियाँ देने लगते थे और कभी कभी दौड़ाकर मारने भी लगते थे । सन् १९७५ ई० के अप्रेल महीने में जब इस लेखक ने बाबा का दर्शन लाभ किया था, उनकी मुद्रा अत्यंत शाँत थी । उन्होने चरण छूने के लिये भी लेखक को अनुमत किया था । हालाँकि वे उस समय मौन साधे हुए थे । बाद में बाबा आसूराम जी ने बतलाया था कि बाबा ने पूछवाया है कि कोई काम तो नहीं है । लेखक चूँकि पड़ाव आश्रम से अघोराचार्य महाराज के दर्शनार्थ आया था, उसका और कोई मनोरथ नहीं था । अतः विनम्रता से केवल दर्शन लाभ ही मनोरथ है, यह जतला दिया था । लेखक को उस समय बतलाया गया था कि बाबा की आयु इस समय ११० बरस की हो रही है । यदि इसे हम सत्य मान लें तो बाबा का जन्म सन् १८६५ ई० के आसपास हुआ हो सकता है ।
बाबा राजेश्वर राम जी अघोराचार्य थे । वे लम्बे समय तक गहन साधना में लीन रहे थे । भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरुप उनको परमात्मा ने विशेष रुप से तैयार किया था, क्योंकि अघोरेश्वर कीनाराम जी ने सैकड़ों बरस पहले ही कह दिया था कि क्रींकुण्द स्थल के ग्यारहवें महंथ के बाद वे स्वयँ आयेंगे , अतः बाबा राजेश्वरराम जी को अघोरेश्वर का गुरु बनना था । दीक्षा देना था । संस्कारित करना था और आने वाले नये समय के लिये जमीन तैयार करनी थी । ऐसा बाद में हुआ भी । परमपूज्य अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी सन् १९४६ ई० में स्थल पहुँचे और उन्होने बाबा राजेश्वरराम जी से अघोर दीक्षा प्राप्त किया ।
बाबा राजेश्वरराम जी के विषय में बहुत सामग्री उपलब्ध है । उक्त सामग्री का उपयोग हम यहाँ पर नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि जहाँ जहाँ बाबा राजेश्वरराम जी का विवरण है , वहीँ परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी के विषय में भी उल्लेख मिलता है । अतः हम परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी के साथ बाबा राजेश्वरराम जी का विवरण प्रस्तुत करते चलेंगे ।
बाबा राजेश्वरराम जी सन् १९७७ ई० के अंतिम महीनों में अश्वस्थ हो गये थे । उनकी सेवा सुश्रुषा और इलाज की व्यवस्था स्थल में ही की गई थी । बाबा ने अब समाधि ले लेने का निर्णय कर लिया । एक दिन बाबा राजेश्वरराम जी ने अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी को अपनी इस इच्छा से अवगत कराया कि उनके बाद क्रींकुण्ड आश्रम के महंथ का पद बाबा भगवान राम जी संभालें । बाबा भगवान राम जी ने सविनय निवेदन किया कि " मैंने तो समाज और राष्ट्र की सेवा का ब्रत ले लिया है । महंथ पद पर आसीन होने से उस ब्रत में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है ।" अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी ने क्षमा याचना करते हुए एक योग्य व्यक्ति को महंथ पद पर नियुक्ति के लिये प्रस्तुत करने का वचन दिया । अगले ही दिन अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी बालक सिद्धार्थ गौतम राम को लेकर गुरु चरणों में उपस्थित हुए, जिन्हें पारंपरिक एवं कानूनी औपचारिकताएँ पूर्ण करने के उपराँत क्रींकुण्ड आश्रम का भावी महंथ घोषित कर दिया गया ।
बाबा राजेश्वरराम जी का शिवलोक गमन १० फरवरी सन् १९७८ ई० को हुआ था ।
क्रमशः

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