गुरुवार, मार्च 17, 2011

क्रींकुण्ड स्थल के वर्तमान महन्थः अवधूत बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी


बाबा कीनाराम जी
अघोर साधकों, श्रद्धालुओं, भक्तों, उपासकों की तीर्थस्थली क्रींकुण्ड स्थल की स्थापना अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी द्वारा सोलहवीं सदी के पूर्वार्ध में किया गया था । उस समय उत्तर भारत, खासकर काशी एवं पूरे भारतवर्ष के हर क्षेत्र की सामाजिक, धार्मिक स्थिति का विवरण जो अधिकारी विद्वतजन द्वारा प्रकाशित कराया गया है के आधार पर संक्षिप्त रुप से दिया जा रहा है ।


उस काल खण्ड में लोग अनुभव करने लगे थे कि आत्मतत्व की प्राप्ति के लिये वेदाध्ययन, कर्मकाण्ड और दान दक्षिणा व्यर्थ हैं । ब्राह्मणों के द्वारा विभिन्न ब्रत, नियमों, सत्यनारायण कथा, आदि का आविष्कार किया गया । शायद ॠषि उद्दालक एवं आरुणी के नेतृत्व में कर्मकाण्ड के विरुद्ध आँदोलन चला । यही कारण था कि हिन्दू वर्णाश्रम के अन्तर्गत उच्च जातियों द्वारा उपेक्षित होकर छोटी कही जाने वाली जातियाँ बौद्ध, ईसाइ, और इस्लाम जैसे शून्यवाद, एकेश्वरवादी नई चेतनाओं की ओर आकृष्ठ हो गईं । उच्च जाति के हिन्दू भी एकेश्वरवादी इस्लाम की ओर खिंच कर मुसलमान हो गये और शेख, पठान, और मुगल कहलाने लगे जो मुसलमानों में उच्च जातियाँ समझी जाती हैं । इस प्रवृत्ति पर महात्मा कबीर, रामानन्द, कीनाराम, नानक आदि उदार चरित महापुरुषों के आविर्भाव से रोक लगी ।


महात्मन रामानन्द जी ने कहा थाः
"निगुरा बाभन न भला, गुरुमुख भला चमार ।" यदि चमार गुरुमुख था तो रसोई से लेकर पूजा तक और रामानन्द जी के सानिध्य में उसको वही आदर का स्थान प्राप्त था जो किसी भी उच्च वर्ण वाले को था । तत्कालीन धार्मिक और सामाजिक वातावरण से क्षुब्ध होकर प्रतिकार के उद्देश्य से ही सन्त तुलसी दास जी ने रामायण का प्रणयन किया था ।
उस काल की स्थिति का चित्रण यूरोपियन यात्री बर्नियर, तावेर्नियर तथा पीटरमँडी ने अपने बयानों में किया है । फ्राँसीसी यात्री तावेर्निये ने लिखा हैः " ब्राह्मण गँगास्नान एवँ पूजापाठ के पश्चात भोजन बनाने में अलग अलग जुट जाते थे और उन्हें सदा यह भय लगा रहता था कि कहीं कोई अपवित्र आदमी उन्हें छू न ले । एक ओर तो यह स्थिति थी और दूसरी ओर शाहजहाँ के हूक्म से बनारस के अर्धनिर्मित मंदिरों को गिराया जा रहा था, जिसका विरोध भी हो रहा था । पीटर मंडी ने ऐसे ही एक राजपूत की लाश पेड़ से लटकते देखी थी जो मंदिरों को नष्ट करने के लिये तैनात किये गये हैदरबेग और उसके साथियों को मार डाला था । यह घटना ई० सन् ०३ दिसम्बर १६३२ की है ।

औरंगजेब के शासन काल में २ सितम्बर, १६६९ ई० को बादशाह को खबर दी गई कि बनारस में विश्वनाथ का मँदिर गिरा दिया गया और उसपर ज्ञानवापी की मस्जिद भी उठा दी गई ।

उक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि हिन्दू समाज की अवस्था सभी दृष्टिकोणों से जर्जर हो चुकी थी और वह प्रायः निष्प्राण और चेतना शून्य होकर निहित स्वार्थ वाले वर्ण और वर्गों के लोगों के हाथ कठपुतली से अधिक नहीं रह गया था । मुसलमान शासक हिन्दूधर्म और समाज पर भिन्न भिन्न ढ़ँग से कुठाराघात कर रहे थे और हिन्दू राजा और जमींदार मुस्लिम शासकों के गुलाम से अधिक नहीं रह गये थे । दोनो मिलकर बर्बरता और निष्ठुरता से प्रजा का शोषण और दोहन कर रहे थे ।

ऐसे समय में बाबा कीनाराम जी ने सामाजिक जीवन को सत्य और न्याय पर आधारित होने का दर्शन दिया । उन्होने समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार तथा अनैतिकता को दूर करने के लिये अधिकारी वर्ग और सत्ताधारियों के विरुद्ध संघर्ष किया और उनका विरोध किया । उन्होने देश भर में व्यापक भ्रमण किया और अन्याय के निराकरण का शतत प्रयास करते रहे ।

भारत में आज की परिस्थितियाँ कमोवेश महाराज कीनाराम जी के समय जैसी ही हैं । समाज में हर स्तर पर बिखराव आ रहा है । भ्रष्टाचार का बोलबाला है । अधिकारी, नेता जन साधारण के हित चिन्तन के बजाय स्वार्थपूर्ति में लगे हुए हैं । चारों तरफ शोषण तथा उपेक्षा का खेल खुलकर खेला जा रहा है । स्त्रियाँ सुरक्षित नहीं हैं । सक्षम लोगों का नैतिक अधोपतन हो गया है । समाज बिखँडित होने के कगार पर है । उपेक्षित होकर छोटी कही जाने वाली जातियाँ , दलित वर्ग की जातियाँ समानता से आकर्षित होकर बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म अपना रही हैं । ईसाइ और मुसलमान धर्म में भी धर्मान्तरण जारी है ।

ऐसे समय में महाराज कीनाराम जी जैसे महापुरुष , जो समाज को सही राह दिखाये तथा अनाचार एवं शोषण के विरुद्ध समाज को जागरित कर सके की नितान्त आवश्यकता है ।

पुनरागमन




















बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी

अघोरेश्वर बाबा कीनाराम जी ने क्रींकुण्ड स्थल के विषय में कहा था कि इस स्थल के ग्यारह महन्थ होंगे , उसके बाद वे स्वयँ आयेंगे । अघोराचार्य बाबा राजेश्वर राम जी स्थल के ग्यारहवें महन्थ थे । बारहवें महन्थ के रुप में बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी अभिषिक्त हुए हैं । शिष्य, श्रद्धालु, और भक्त समुदाय की मानें तो वर्तमान क्रींकुण्ड स्थल के महन्थ बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी के अवतार हैं ।
बाबा का जन्म, परिवार तथा शैशव काल की जानकारी अप्राप्त है । जितने मुँह उतनी बातें । हम सुनी सुनाई बातों की चर्चा नहीं कर रहे हैं । बाबा को लगभग ६ या ७ वर्ष की आयु में अघोरेश्वर भगवान राम जी के साथ पड़ाव आश्रम में देखा गया था । बाबा को लेखक ने भी उक्त अवस्था में पड़ाव आश्रम में देखा था ।
बाबा राजेश्वरराम जी सन् १९७७ ई० के अंतिम महीनों में अश्वस्थ हो गये थे । उनकी सेवा सुश्रुषा और इलाज की व्यवस्था स्थल में ही की गई थी । बाबा ने अब समाधि ले लेने का निर्णय कर लिया । एक दिन बाबा राजेश्वरराम जी ने अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी को अपनी इस इच्छा से अवगत कराया कि उनके बाद क्रींकुण्ड आश्रम के महंथ का पद बाबा भगवान राम जी संभालें । बाबा भगवान राम जी ने सविनय निवेदन किया कि " मैंने तो समाज और राष्ट्र की सेवा का ब्रत ले लिया है । महंथ पद पर आसीन होने से उस ब्रत में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है ।" अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी ने क्षमा याचना करते हुए एक योग्य व्यक्ति को महंथ पद पर नियुक्ति के लिये प्रस्तुत करने का वचन दिया । अगले ही दिन अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी बालक सिद्धार्थ गौतम राम को लेकर गुरु चरणों में उपस्थित हुए, जिन्हें पारंपरिक एवं कानूनी औपचारिकताएँ पूर्ण करने के उपराँत क्रींकुण्ड आश्रम का भावी महंथ घोषित कर दिया गया ।

बाबा राजेश्वरराम जी का शिवलोक गमन १० फरवरी सन् १९७८ ई० को हुआ था ।
क्रींकुण्ड स्थल के बारहवें महंथ के रुप में बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का अभिषेक सम्पन्न हो गया । अभिषेक के समय बाबा की आयु लगभग नौ वर्ष की रही होगी । अघोरेश्वर भगवान राम जी ने महंथ जी के आध्यात्मिक शिक्षा दीक्षा के अलावा जागतिक पढ़ाई का भी प्रबंध कर दिया था । सन् १९९० ई० में बाबा ने तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान , सारनाथ वाराणसी में अपनी पढ़ाई पूरी की ।
बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी, महंथ क्रीं कुण्ड स्थल के विषय में बिस्तृत लौकिक जानकारी लेखक न पा सका, परन्तु एक बात उसके जेहन में बार बार बिजली की तरह कौंधती है, वह यह कि जिस प्रकार पुरातन काल में भगवान सदाशिव के शिष्य बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी ने अपने तपोबल से सिद्धों के सिद्ध बाबा गोरखनाथ जी को अयोनिज जन्म दिया था ठीक उसी प्रकार कहीं अघोरेश्वर बाबा भगवान राम जी के तपोबल के प्रतिरुप बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी भी तो नहीं हैं । सत्य चाहे जो हो, पर इस बात में तो बिल्कुल ही संशय नहीं है कि बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी जन्मना सिद्ध महापुरुष हैं । यहाँ आकर अघोरेश्वर बाबा कीनाराम जी की वाणी सत्य हो जाती है कि बारहवें महंथ के रुप में वे स्वयँ आयेंगे ।
बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी ने क्रीं कुण्ड स्थल में विकास के अनेक कार्य कराया है । स्थल की प्रसिद्धि और बढ़ी है । देश विदेश के श्रद्धालु जन बड़ी संख्या में स्थल आते हैं । स्थल में " अघोराचार्य बाबा किनाराम अघोर शोध एवं सेवा संस्थान " नाम से एक संस्था संचालित है, जो अघोर विषयक शोधकार्य में निरत है । इसके अलावा औघड़ी दवाओं के निर्माण के लिये एक निर्माणशाला भी बाबा ने स्थापित किया है ।
आज भी स्थल में दूर दूर से अघोर साधक आकर तपश्चर्या, साधना करते और सफल मनोरथ होते हैं । साधकों को बाबा का मार्गदर्शन हमेशा सुलभ है ।
क्रमशः