मंगलवार, मई 05, 2015

अघोर वचन - 18

" कहने को तो हम बहुत कुछ कह डालते हैं, सुनने के लिये हम लोगों का बहुत कुछ सुनते हैं, पढ़ने के लिये बहुत कुछ पढ़ लेते हैं मगर यह सब उसी छाया को पकड़ने सरीखे है‍ जैसे आगे आगे छाया भागता जाय, हम पकड़ने जाँय, वह कभी धराता नहीं, ले जाकर गड्ढ़े में गिरा देता है । हमें गुरूजनों ने इतना ही खाली कहा है कि तूँ घूम जा । यह संसार रूपी जो छाया है, यह तुम्हारे पीछे पीछे घूम जाएगा ।"
                                                             ०००

मनुष्य जीवन बहुधा निरूद्देश्य बीत जाता है । पशु से थोड़ा उपर पढ़ना, लिखना, कहना, सुनना और सपना बुनते हुए हम जीवन को जीते हैं । सुख, दुःख, काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसी मन की वृत्तियाँ हमें जैसा और जिधर ले चलती हैं हम चल देते हैं । कभी कभी तो हम बिना सोचे समझे ऐसा काम कर जाते हैं कि बाद में हमें पछताना पड़ता है । एक एक पैसे के लिये रोते हैं और देह छोड़ने के समय लाखों छोड़ जाते हैं । मान सम्मान के ऐसे भूखे हैं कि उसके लिये कितना ही नीचे गिर सकते हैं । इसके अलावा अनेक बार हम पशु भी बन जाते हैं और काम संज्ञा के अधिन होकर रेप जैसा अमानुषिक कृत्य भी कर जाते हैं । इन सबका कारण है कि हम यह नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं । हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है । इस शरीर के अलावा भी हमारा अपना कहने के लिये कुछ है कि नहीं । हम मनुष्य तो हैं पर पशु भाव हमको नहीं छोड़ा है ।

पश्चिम जब जीवन को आसान बनाने के लिये पदार्थ जगत के अनुसंधानों में लगा हुआ था, हम मानसिक जगत और अध्यात्म की गहराईयों में उतरकर सुख चैन, आनन्द और भवसागर से पार उतरने के उपायों की खोज कर रहे थे । हमारे ऋषियों, मुनियों, अध्यात्मिक रूप से उन्नत संतों, महापुरूषों ने पाया कि मनुष्य जबतक इन्द्रियों को उनका इच्छित भोग चढ़ाता रहेगा, मन की सुनता रहेगा और अपने आत्म तत्व की अवहेलना करता रहेगा आनन्द नहीं पा सकता । परमात्म तत्व की बात तो बहुत दूर की कौड़ी है । उन्होने इसके लिये एक सहज मार्ग बतलाया वह यह कि तूँ घूम जा । घूम जा का अर्थ है जो आज तक करता आया है उसके उलट कर । मन की सुनता था अब ध्यान बँटाकर उसको सुनाने का मौका ही मत दे । वृत्तियों को देख कि वे व्यर्थ के कार्यों में उलझाकर मनमानी तो नहीं करा रहे हैं । अपनी औकात और प्रयत्न के अनुसार सपना देख और सच करने की चाहना कर । वे कहते हैं कि यदि हम ऐसा करेंगे तो यह जो दुःख और अशांति रूप संसार है, वह तेरे अनुरूप होता जायेगा । मनुष्य को इस प्रकार सुख, शान्ति और आनन्द की प्राप्ति होगी ।
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