। वन्दे गुरुपद द्वंद्वँ, वाङ् मनश्चित्तगोचरम् ।
।। श्वेत रक्तप्रभाभिन्नं, शिवशक्त्यात्मकं परम् ।।
अघोरेश्वर भगवान राम जी के चरण कमल की वन्दना कर उनके मुखारबिन्द से निनादित वाणी में से गुरुतत्व का सूत्र सँकलित है । अघोरेश्वर कहते हैंः
" गुरु कोई खास हाड़, चाम के नहीं होते या कोई खास जाति, कास्ट के व्यक्ति नहीं होते हैं । गुरु तो वही होता है जिसे देखने पर हमें ईश्वर याद आये, जिसे देखने पर माँ जगदम्बा के चिँतन की तरफ उत्सुकता हो ।
आप तो अपने कहीं , किसी भी पीठ में चाहे जड़ हो या चेतन हो, उसमें गुरुपीठ स्थापित करके, उस गुरुत्व आकर्षण की तरफ खिंचा सकते हैं । पर कभी स्थापित ही नहीं किये हों तो उस गुरुत्व के आकर्षण की तरफ आप जा भी नहीं सकते । भले आप ब्रह्मा, विष्णु, शिव या बहुत बड़े व्यक्ति भी हो सकते हैं । मगर अपनी निजी जो प्राणमयी भगवती हैं, उनके साथ आपकी तन्मयता नहीं हो सकती ।"