सोमवार, अप्रैल 25, 2011

अघोरेश्वर भगवान राम जीः अस्वस्थता

अमेरिका में न्यूयार्क स्थित माउन्ट सिनाई चिकित्सालय से पूज्य बाबा दि. २८ जनवरी १९८८ को सम्पन्न सफल आपरेशन के पश्चात पूर्णतः स्वस्थ होकर बनारस लौट आये । बाबा के डाक्टर श्री बरोज, उनके सहयोगी, नर्स तथा अन्य सभी ने बाबा के स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना की एवँ भावभीनी बिदाई दी थी । डाक्टर बरोज ने कई आश्चर्यजनक घटनाओं को घटित होते प्रत्यक्ष देखा था । उनका चिकित्साशास्त्र जनित ज्ञान अनेक अवसरों पर असफल सिद्ध हो चुका था । इन सब बातों से उनका श्रद्धावनत होना स्वाभाविक ही कहा जायेगा । बिदाई के अवसर पर डाक्टर बरोज ने एक श्रद्धालु की तरह बाबा के चरणों प्रणिपात किया था । स्वदेश लौटकर बाबा समयानुकूल सभी नित्यक्रियायें, दवाई, भोजन लेने लगे । पुरानी दिनचर्या में लौटने के बाद भी बाबा को इन्फेक्शन से बचाव के लिये कुछएक बँदिशों का पालन करना ही पड़ता था । सन् १९८९, से १९९१ ई० में प्रतिवर्ष एकबार रुटीन चेकप के लिये बाबा अमेरिका जाते रहे । सबकुछ ठीकठाक चल रहा था .






बुधवार, अप्रैल 06, 2011

अघोरेश्वर भगवान राम जीः लीक से हटकर, एक महा मानव

बाबा भगवान राम जी


" तन मारा , मन बस किया

सोधा सकल सरीर ।

काया को कफनी किया

वाको नाम फकीर ।। "

अघोरेश्वर जाति, धर्म, भाषा,देश, लिंग जैसी समस्त संकीर्णताओं को नकार कर एक पूर्ण मानव के रुप में इस धरती पर बिचरते थे । उनका जीवन साम्प्रदायिक प्रेम और सदभावना का उत्कृष्ठ उदाहरण रहा है । अपने आध्यात्मिक जीवन के आरम्भ में वे बनारस शहर में ही एक हाजी साहब के बगीचे में रहते थे । उनके शिष्यों, श्रद्धालुओं में युरोप और अमेरिका तक के मुमुक्षु लोग शुमार हैं । इनमें महात्मा उम्बर्तो बीफी जी का नाम सर्वोपरी है । बाबा की सरल भोजपुरी मिश्रित हिन्दी भाषा से नितान्त अपरिचित पश्चिमी देशों के ये शिष्य एक रहस्यमय अलौकिक चमत्कार की भाँति अघोरेश्वर के उपदेशों को आत्मसात कर समाज सेवा और आत्मोन्नति के मार्ग में लगे हैं । " एक मौन‌ ‍‌भाषा, बहु भावमयी । " कदाचित बाबा ने मन के तार जोड़कर शिष्यों का संशय छिन्न कर दिया ।
सन् १९८३ ई० में अघोरेश्वर ने अपने तीन मुड़िया साधुओं बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी, बाबा प्रियदर्शी राम जी और बाबा गुरुपद संभव राम जी को एक महती सभा में प्रस्तुत किया । ये तीन तपःपूत दिब्य आत्माएँ अघोरेश्वर के निजी संरक्षण और निरीक्षण में तप कर निकले अघोरेश्वर के प्रतिरुप बनने की समस्त संभावनायें लिये हुये थे । बस काल की प्रतिक्षा भर शेष थी । अघोरेश्वर की दिव्य दृष्टि अपने इन तीन रत्नों के सुदूर भविष्यत् को भी देख पाने में सक्षम थी तभी तो क्रीं कुण्ड आश्रम जैसे स्थल के महंथ के पद पर बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का अभिषेक महज नौ वर्ष की बयस में कर दिये थे । यह कार्य अघोरेश्वर भगवान राम जी ही कर सकते थे ।
 
अघोरेश्वर भगवान राम जी की दृढ़ मान्यता थी कि समाज की व्यवस्थायें देश, काल और परिस्थिति के अनुसार बदलनी चाहिये । पहले औघड़ जीवन में शराब एक अभिन्न और अनिवार्य वस्तु के रुप में व्यवहृत होती थी, परन्तु आपने मद्यपान पर कठोर प्रहार किया और इसका पूर्ण निषेध कर दिया । बाबा की वेशभूषा सादा हुआ करती थी । वे कहा करते थे कि पूर्व में औघड़ रौद्र रुप में रहा करते थे, क्योंकि विदेशी दासता के दिनों में अत्याचारियों का दर्प दमन करने के लिये रौद्र रुप और चमत्कारों की आवश्यकता थी किन्तु स्वधीन भारत में मैत्री, प्यार और करुणा की आवश्यकता है ।
अघोर साधना के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि देश भर से इतनी बड़ी संख्या में स्त्री , पुरुष अघोरपथ पर चलना शुरु किये । अघोरी समाज के करीब आये । मानव समाज ने उन्हें आदर सहित न केवल स्वीकार किया वरन् अपनी श्रद्धा सुमन भी अर्पित किया । इन ऐतिहासिक घटनाओं के सूत्रधार परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी ही थे ।

श्री तेज प्रताप सिनहा उर्फ पोली जी

बनारस निवासी गृहस्थ साधु पोली जी अघोरेश्वर के अन्यतम शिष्यों में से एक हैं । आपकी गुरु निष्ठा, सेवा, तप अतुलनीय है । अघोरेश्वर निश्चय ही पोली जी के रुप में गृहस्थ साधु शिष्य गढ़कर दिखा दिया कि अघोरी केवल गृहत्यागी साधु ही नहीं बल्कि गृहस्थी का सुसंचालन करते हुए भी हो सकते है । आप उच्चमना, सन्त, महापुरुष हैं । आपपर अघोरेश्वर का स्नेह बरसने का एक उदाहरण निम्नानुसार है ।

बाबा के परम भक्त, कृपाप्राप्त शिष्य श्री बी पी सिन्हा जी ने बाबा की दूरदृष्टि ओर सर्वज्ञता की ओर इशारा करते हुए श्री सर्वेश्वरी समूह द्वारा सन् १९८८ में प्रकाशित अपने ग्रँथ " अघोरेश्वर भगवान राम , जीवनी" में इस महत्वपूर्ण घटना का विवरण कुछ इस प्रकार दिया हैः

" सन् १९८३ की २४ जुलाई को हुए गुरु पूर्णिमा का अपना अलग महत्व है । श्री सर्वेश्वरी समूह का विस्तार जिस तेजी से हो रहा था, उसे देखते हुए अघोरेस्वर ने उसके भविष्य की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिये उस दिन अपने चार प्रमुख शिष्यों को अलग अलग क्षेत्रों के लिये अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उनका अभिषेक किया ।

अघोरेश्वर महाप्रभु ने अवधूत भगवान राम ट्रस्ट के अध्यक्ष पद पर अपने बाद शर्ी गुरुपद स्भव राम जी को मनोनित किया । श्री गुरुपद संभव राम मध्य प्रदेश के नरसिंह गढ़ रियासत के भूतपूर्व महाराजा श्री भानु प्रताप सिंह के पुत्र हैं । मध्यप्रदेश की शाखाओं का भार प्रियदर्शी राम जी को दिया गया । श्री सिद्धार्थ गौतम राम जी को पहले ही क्रीं कुण्ड के महंथ पद पर आसीन किया जा चुका था । श्री सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष पद के लिए श्री तेज प्रताप सिन्हा ,उर्फ पोली जी को मनोनित कर चारों प्रमुख शिष्यों का अभिषेक किया गया । इनमें प्रथम तीन तो वितराग साधु हैं और श्री तेज प्रताप सिन्हा गृहस्थ साधु होंगे ।"

सन् १९८५ ई० के आते आते अघोरेश्वर के तप, तितिक्षा, परमार्थ, सेवा का अनवरत कार्य, आदि ने उनके शरीर को रोगग्रस्त कर दिया । इलाज चलता रहा और करुणा मूर्ति अघोरेश्वर अपने कार्य में लगे रहे । विश्राम के लिये अवकाश ही नहीं था । इसी बीच बाबा ने " अघोर परिषद ट्रष्ट" की स्थापना कर दिनांक २६.०३.१९८५ ई० को पंजीकरण कराया ।

बाबा की अस्वस्थता दिनों दिन बढ़ती जा रही थी । एक गुर्दा काम करना लगभग बंद कर दिया था । देश में उपलब्ध चिकित्सा से लाभ नहीं हो रहा था । चिकित्सकों के द्वारा गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता बताई जा रही थी । अंततः शिष्यों और भक्तों के विशेष आग्रह, निवेदन, प्रार्थना पर अघोरेश्वर चिकित्सार्थ अमेरिका जाने के लिये तैयार हुए । फलस्वरुप २७ अक्टूबर १९८६ ई० को अमेरिका के लिये प्रस्थान किया । दिनाँक १० दिसम्बर सन् १९८६ ई० को न्यूयार्क के माउन्ट सिनाई अस्पताल में सर्जन डा० लुईस बरोज द्वारा बाबा के शिष्य श्री चन्द्रभूषण सिंह उर्फ कौशल जी के गुर्दे का बाबा के शरीर में प्रत्यारोपण किया । आपरेशन सफल रहा । कुछ समय के स्वास्थ्य लाभ के पश्चात बाबा स्वस्थ होकर भारत वापस लौट आये ।

लगभग एक वर्ष पश्चात बाबा का स्वास्थ्य फिर से नरम गरम होने लगा । विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्यारोपित गुर्दा ठीक से काम नहीं कर रहा था । विषय विशेषज्ञ डाक्टरों की सलाह पर बाबा को पुनः आपरेशन के लिये अमेरिका जाना पड़ा । गुर्दा प्रत्यारोपण का दूसरा आपरेशन दिनाँक २८ जनवरी सन् १९८८ ई० को डा० लुईस बरोज के ही हाथों सम्पन्न हुआ । इस बार बाबा जी की इच्छानुसार उनके युवा शिष्य बाबा अनिल राम जी का गुर्दा प्रत्यारोपित किया गया ।

बाबा अनिल राम जी

" भगति, भगत, भगवान, गुरु, चारों नाम वपु एक ।"

पूज्य बाबा भगवान राम जी ने कभी अपने भक्त, शिष्य, श्री जिष्णुशँकर जी को समझाया था । बाबा अनिल राम जी उक्त वाणी को चरितार्थ करते हैं । बाबा की भक्ति में वे लीन हैं अतः भक्त हैं । अघोरेश्वर ही उनके भगवान हैं । अघोरेश्वर उनके गुरु भी हैं । इस प्रकार चारों नाम बाबा अनिल राम जी नामक एक वपु में समाहित हैं ।

बाबा अनिल राम जी को बाबा की सेवा में रहने का बहुत अवसर मिला है । सन् १९८६ ई० में बाबा का किडनी प्रत्यारोपण हुआ था । तब बाबा के शिष्य श्री चन्द्रभूषण सिंह उर्फ कौशल जी के गुर्दे काम आया था । उसी वर्ष एक दिन आगत निगत को जाननेवाले बाबा ने अनिल जी से गुर्दा देने के विषय में पूछ लिया था और लेश मात्र झिझक के बिना ही इस "महावीर भक्त" ने "हाँमी" भर दी थी । समय बीतने के साथ यह बात किसी के ध्यान में नहीं रही थी । सन् १९८७ ई० के अँत में जब बाबा का इलाज के लिये अमेरिका जाने का कार्यक्रम बना, जाने वालों में अनिल जी का नाम नहीं था । अँतिम समय में बाबा स्वयँ होकर बोले कि अनिल जी भी जायेंगे । जनवरी १९८८ में बाबा का दूसरा किडनी प्रत्यारोपण होना था । उपस्थित सभी भक्तों ने अपने अपने रक्त की जाँच कराई परन्तु श्री अनिल जी का ही गुर्दा मेल खाता प्रतीत हुआ । श्री अनिल जी के गुर्दा के साथ बाबा का यह दूसरा आपरेशन दिनाँक २८ जनवरी सन् १९८८ ई० को डा० लुईस बरोज के ही हाथों सम्पन्न हुआ ।

बाबा अनिल राम जी बाबा की सेवा में अँत तक सतत लगे रहे । गुरु सानिध्य का लाभ जितना बाबा अनिल राम जी को मिला है, शायद ही किसी और को मिला होगा ।

बाबा अनिल राम जी बहुत वर्षों तक इटली के आश्रम में रहे हैं । वर्तमान में बनारस में महाविभूतिस्थल के समीप आपका आश्रम " अघोर गुरु सेवा पीठ " स्थापित है । जन सेवा के अनेक कार्य जैसे स्कूल, निशुल्क चिकित्सा, बालोपयोगी तथा प्रेरक साहित्य का प्रकाशन, बाबा इसी आश्रम से संचालित करते हैं ।

क्रमशः