गुरुवार, अक्तूबर 01, 2009

क्रींकुण्ड के पाँचवे महंथ बाबा गइबीराम

बाबा गइबीराम ब्राह्मण कुमार थे । ये अघोर दीक्षा के पहले सरकारी कर्मचारी थे । किसी प्रकार आपको सुरापान की लत पड़ गई । ब्राह्मण कुमार का सुरापान ब्राह्मण समाज को गवारा नहीं हुआ और आप समाज बहिस्कृत हो गये । इसी अवस्था में आप क्रींकुण्ड आश्रम आ गये । आप साधना में बहुत रुचि लेते थे । आप अपनी तपः सिद्धी के लिये बहुत प्रसिद्ध हुए । कालांतर में गुरु बाबा धौतारराम ने आपको क्रींकुण्ड आश्रम की गद्दी सौंपकर महंथ पद पर आसीन करा दिया ।
वाराणसी शहर में कामक्षा के निकट एक कुआँ है । इस कुएँ का जल बड़ा ही चमत्कारी है । कहा जाता है कि इसका जल पान करने से गुर्दे की पथरी ठीक हो जाती है । सामान्यतः भी इस कुएँ का जल स्वास्थ्यकर माना जाता है और कई नगरवासी इस कुएँ का जल मँगाकर पीते हैं । इस कुएँ का नाम " गैबी का कुआँ " है । अवश्य ही क्रींकुण्ड के महंथ बाबा गइबीराम जी की तपः शक्ति से ही इस कुएँ के जल में उक्त चमत्कारिक गुण विद्यमान हैं । कहा जाता है कि बाबा गइबीराम जी में संगठन की विलक्षण प्रतिभा थी । उन्होने ही क्रींकुण्ड स्थल के चारों ओर प्रथम बार चहार दिवारी बनवाई थी ।
बाबा गइबीराम जी की जीवनी एवं कृतित्व के बारे में इससे ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
क्रमशः

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