रविवार, फ़रवरी 20, 2011

अघोरेश्वर भगवान राम जीः विदेशी साधु शिष्य


श्री उम्बर्तो बिफ्फी, इटली



अघोरेश्वर के साथ श्री उम्बर्तो
ई० सन् १९७७ का दिसम्बर माह में बनारस के एयर पोर्ट पर एक नवयुवक हवाई जहाज से उतरता है । रुप, रंग, नाक नक्श से नवयुवक सहज ही पहचाना जा रहा है कि वह युरोप के किसी देश का वासी है । नव युवक बाहर आकर टेक्सी लेता है और अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी द्वारा शिवाला मुहल्ले में स्थापित क्रीँकुण्ड आश्रम के लिये चल देता है । क्रीँकुण्ड आश्रम में महन्त बाबा राजेश्वर राम जी के अलावा बाबा आसू राम जी से उनकी भेंट होती है । महन्त जी अजगर वृत्ति के महात्मा हैं, वे अपने स्वभाव के अनुरुप महाराज कीनाराम जी के समय से चिताओं की अधजली लकड़ीयों से जलती चली आ रही अखण्ड धूनी के सामने दालान में पेट के बल हाथों पर ठूड्ढ़ी टिकाये शून्य में निर्निमेश दृष्टि से ताकते समाधि के आनन्द में मग्न हैं । बाबा आसू राम जी कुछ दूरी पर एक लकड़ी की कुर्सी पर एक पैर पर दूसरा पैर रखे, रीढ़ सीधा किये ध्यानमग्न बैठे हैं । उनकी आँखें बन्द हैं । पूरा आश्रम परिसर शान्त और निस्तब्ध है ।


अघोरेश्वर के साथ श्री उम्बर्तो

क्रींकुण्ड आश्रम के महन्थ बाबा राजेश्वर राम पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे हैं । उन्होने अपनी समाधि ले लेने की इच्छा से सभी को अवगत करा दिया है । अघोरेश्वर भगवान राम जी ने अपने सुयोग्य शिष्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी, जो अभी नौ वर्ष के बालक हैं, को क्रींकुण्ड का भावी महन्त प्रस्तावित किया है । महन्थ जी ने अघोरेश्वर के प्रस्ताव का अनुमोदन कर बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी को भावी महन्त घोषित भी कर दिया है । ऐसे समय में वह नवयुवक क्रींकुण्ड आश्रम पहुँच कर बाबा राजेश्वर राम जी का दर्शन करते है और महन्त जी को अपना परिचय देते हैं । उनका नाम उम्बर्तो बिफ्फी है और वे इटली से आ रहे हैं । श्री उम्बर्तो महन्त जी को अपने आने के उद्देश्य से भी अवगत कराते हैं । भाषा उन्हें स्वयँ को अपेक्षित रुप से अभिव्यक्त करने में कठिनाई उपस्थित करती है, परन्तु जिनके लिये आगत विगत जानना खेल हो, उम्बर्तो जी की आँतरिक स्थिति को सहज ही जान लेते हैं । महन्थ जी श्री उम्बर्तो को आश्रम में आश्रय प्रदान कर देते हैं । श्री उम्बर्तो कुछ ही काल में आस्वस्त हो जाते हैं कि अपने उद्देश्य के अनुरुप वे सही
जगह पहुँच गये हैं ।

अघोरेश्वर के साथ श्री उम्बर्तो एवँ गुरुरत्न

कुछ दिनों के उपराँत अघोरेश्वर भगवान राम जी का क्रीँ कुण्ड आश्रम में आगमन होता है और श्री उम्बर्तो अपने गुरु का प्रथम दर्शन लाभ करते हैं ।
ई० सन् १९७८ के फरवरी माह के दस तारीख को बाबा राजेश्वर राम जी का शिवलोक गमन होता है, और बालक महन्थ बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का महन्थ के रुप में अभिषेक होता है । श्री उम्बर्तो जी इन घटनाओं के समय उपस्थित रहते हैं । उसी वर्ष उनका दीक्षा संस्कार भी सम्पन्न होता है । वे ई० सन् १९७९ के शुरु में वापस इटली लौट जाते हैं |

श्री सर्वेश्वरी समूह, इटली के सदस्यगण
ई० सन् १९८५ में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर श्री उम्बर्तो जी का पुनः भारत आगमन होता है । वे पड़ाव स्थित औघड़ भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम में अघोरेश्वर के सानिध्य में एक लम्बा समय बिताते हैं । इसी वर्ष उनका मुड़िया साधु के रुप में सन्यास दीक्षा सम्पन्न होता है और उन्हें नाम मिलता है " अघोर गुरुबाबा" ।

अघोरेश्वर अपने भ्रमण के क्रम में ई० सन् १९८८ में अघोर गुरुबाबा के आग्रह पर इटली की यात्रा करते हैं । इटली के शिष्यों और श्रद्धालुओं द्वारा अघोरेश्वर के इसी प्रवास के समय श्री सर्वेश्वरी समूह की इटली शाखा का गठन किया जाता है । इटली में एक अघोर आश्रम की स्थापना भी होती है । ई० सन् १९८९ से समूह की यह शाखा गुरुपूर्णिमा के अवसर पर समूह के मुख्यालय पड़ाव आश्रम को अपना वार्षिक प्रतिवेदन देना शुरु करती है ।
श्री सर्वेश्वरी समूह की इटली शाखा एवँ अघोरेश्वर द्वारा स्थापित आश्रम आज उन्नति के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है ।

क्रमशः









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