गुरुवार, नवंबर 19, 2009

अघोरेश्वर भगवान राम जीः गृहत्याग














"समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्


बालक भगवान दास को घरवालों का बार बार का हस्तक्षेप करना अब असह्य होने लगा था जैसे जैसे उनका मन साधना में रमता जा रहा था किसी भी प्रकार का बिघ्न पड़ना उनको स्वीकार नहीं था वे अनुभव कर रहे थे कि गाँव में रहने से घर चलने के लिये उनपर दबाव कभी भी कम नहीं होगा, वरन् बढ़ता ही जायेगा इससे उनका मनोरथ सिद्ध नहीं हो सकता उन्होंने संकल्प कर लिया कि अब गृहत्याग करना ही श्रेयस्कर है


बालक भगवान दास में जब इस प्रकार की भावनाएँ जाग रही थी, तब उनकी अवस्था मात्र नौ वर्ष की ही थी अबतक उन्हें गुण्डी ग्राम से बाहर आरा तक ही जाने का अवसर मिला था उन्हें स्वयं नहीं पता था कि घर से, गाँव से निकलकर वे कहाँ जायेंगे जाने का उनका निश्चय अटल था उन्हें अपने इष्ट पर भरोसा था

सन् १९४६ का नवम्बर या दिसम्बर का महीना रहा होगा एक रात आपने घर छोड़ दिया अकेले ही गाँव के बाहर गये सामान के नाम पर तन पर पहने कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था जेब में फूटी कौड़ी भी थी गन्तव्य का भी पता नहीं था उस समय उनकी पूँजी मात्र उनका दृढ़ आत्मबल था और थी परमेश्वर पर असीम आस्था वे गाँव से बाहर आकर अनायास ही एक ओर चल पड़े

उस समय शिशिर ॠतु थी कड़ाके की ठंड पड़ रही थी आपके पास ॠतु के अनुकूल वस्त्रदिक नहीं थे दिन में तो धूप के कारण परेशानी नहीं होती थी परन्तु रात कभी कभी अरहर के खेत में छुपकर बितानी पड़ती थी आप भोजन और आवास दोनो की ही कठिनाई झेलते हुए आगे बढ़ते रहे कभी कोई गाँव मिला और व्यवस्था हो पाई तो आराम से रात बिता ली अन्यथा उस अज्ञात का ही आसरा था क्षुधा पूर्ति के लिये कभी कुछ मिल गया तो ठीक बाकी तो रास्ते के खेत से कच्चे परवल, टमाटर आदि तोड़कर खा लिया करते थे कभी कभी केवल जल पीकर ही रह जाना पड़ता था

इसी प्रकार घूमते घामते कुछ दिनों के पश्चात आप गया पहुँच गये गया पहुँच कर आपने सभी तीर्थस्थलों का दर्शन किया और आनन्दमग्न होकर कुछ समय के लिये गया में ही ठहर गये तीन चार दिन बाद ही परिवार के सदस्यों द्वारा आपको ढ़ूढ़ने भेजे गये व्यक्तियों द्वारा आप खोज निकाले गये और आपको पकड़कर एक बार पुनः आपके गाँव गुण्डी ले जाया गया

घर में रहना तो था नहीं आप इधर उधर भ्रमण पर जाते रहे अब परिवार के लोग भी अधिक सतर्कता बरतने लगे थे, अतः हर बार गुण्डी लौट आना पड़ता था इसी क्रम में एक बार आप भगवान श्री जगन्नाथ जी के दर्शन के लिये पुरी पहुँच गये

जगन्नाथ पुरी पहुँचकर आपने मुन्डन कराया और स्नान आदि से निवृत होकर त्रिलोकी के स्वामी भगवान श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिये मंदिर पहुँच गये भगवान का दर्शन होते ही आप भावावेश में गये आपको अभूतपूर्व आनन्द की अनुभूति हुई जब आप प्रदक्षिणा कर रहे थे तो एक पण्डा ने आपके सिर पर प्रहार करते हुए कहा कि क्यों भेंट चुराते हो? आपने अपने पास बचे हुए कुल दो पैसों को उस पण्डा को सौंप दिया इसे आपने दान माना जिससे आपको अतीव आनन्द हुआ तीन चार दिन पुरी में निवास कर आप अपने घर गुण्डी लौट आये

कुछ काल पश्चात आपक अपने वैष्णव गुरु जी के साथ पटना जिले के मनेर कस्बे में रामानुज सम्प्रदाय द्वारा आयोजित महा सम्मेलन में भाग लेने गये आपको वहाँ के भजन कीर्तन, प्रवचन आदि में बहुत आनन्द आया उक्त सम्मेलन में कही गई एक पंक्ति आपको हमेशा याद रहीः

" रामानुज पद बिनु तरिहौं भाई " अघोरेश्वर इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार बतलाते थेः " तरन तारन वही हो सकता है जो उस पद को प्राप्त कर ले जो रामानुज ने प्राप्त किया था "

अधिवेशन से लौटकर आने के बाद आपके साथ एक अद्भुत घटना घटी

फागुन का महीना था दिन का तीसरा प्रहर रहा होगा बालक भगवान दास गुण्डी के अपने घर के दालान में एक चौकी पर लेटे हुए थे सहसा उन्हें लगा कि कोई व्यक्ति खड़ाऊँ पहनकर दालान में प्रवेश कर रहा है खड़ाऊँ की आवाज स्पष्ट थी आपने आँखें खोली आपको एक अद्भुत चमत्कारिक प्रकाश का दर्शन हुआ प्रकाश के तेज से आपकी आँखें स्वतः ही मुँद गईं और आपके हृदय में तेज धड़कन प्रारम्भ हो गयी यह ईश्वरीय ज्योति थी, जो आपके वक्षस्थल में प्रवेश कर गई थी उनके अनुसार यह जगदीश की अनुकम्पा हुई थी इस घटना के बाद भी वर्षों तक यह धड़कन बहुधा उमड़ आती थी बाद बाद में जाकर यह शाँत हुई

गाँव में एक बयोबृद्ध सज्जन थे जिन्हें अघोरेश्वर परमहंस जी कहकर स्मरण करते थे ये सज्जन बालक भगवानदास को साधन काल में सदैव प्रोत्साहन दिया करते थे बालक भगवान दास की साधना अब गति पकड़ चुकी थी उन पर जगदीश की अनुकम्पा भी हो चुकी थी उनका मन अब सासारिक विषयों में बिल्कुल भी नहीं लगता था साधना में जरा सा विक्षेप भी उनको स्वीकार नहीं था उनका मन और प्राण उस अज्ञात के लिये आठों प्रहर व्याकुल रहने लगे थे ऐसे में घर में रहना उनके लिये संभव नहीं था अन्यत्र जाकर साधना की इच्छा दिनोदिन बलवती होती जा रही थी आपने परमहंस जी से परामर्श किया और काशी जाकर साधना को आगे बढ़ाने का कार्यक्रम बन गया

यह घटना सन् १९५१ तदनुसार संवत २००८ ई० के श्रावण मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथी की है इस समय आपकी आयु मात्र चौदह बरस की ही थी आपने अकेले ही काशी नगरी के लिये प्रस्थान किया आप आरा स्टेशन पर वाराणसी जानेवाली ट्रेन में सवार हुए और रात्रि एक बजे के करीब वाराणसी छावनी स्टेशन पर उतर गये

स्टेशन से बाहर आकर आपने लोगों से विश्वनाथ मंदिर का पता पूछा वाराणसी में उस रात वर्षा हो रही थी रास्ता चलना कठिन था, उपर से गली के आवारा कुत्ते अलग कठिनाई उपस्थित कर रहे थे आप किसी तरह पैदल चेतगँज तक पाये वहीं सड़क के किनारे आप ठहरकर सुबह होने का इन्तजार करने लगे ब्रह्ममुहुर्त में लोग गँगा स्नान के लिये जाने लगे तो आप भी बिना जाने ही उनके पीछे चल पड़े चलते चलते आप दशाश्वमेध घाट से कुछ पहले डेढ़सी पुल पर रुके अकस्मात एक बृद्धा ने ,जो लाल किनारे की सिल्क की साड़ी पहने हुए थी, आपके निकट आकर बड़े स्नेह से पूछा " तुम कहाँ जाना चाहते हो ?" बालक भगवानदास ने बतलाया कि वे बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन करना चाहते हैं बृद्धा ने फिर पूछा "स्नान कर चुके हो या नहीं ? " आपका नकारात्मक उत्तर पाकर बृद्धा ने पास बहती गँगा में स्नान करने के लिये कहा आप ने घोड़ा घाट या राजेन्द्र प्रसाद घाट में स्नान किया उस समय आपके बदन पर लंगोटी और धोती थी। आपने जाने क्या सोचकर धोती गँगा जी को समर्पित कर दिया और केवल भीगे लंगोट में ही वापस लौटे बृद्धा हाथों में पूजन सामग्री लिये पूर्व स्थान पर खड़ी मिली बृद्धा बालक भगवान दास को बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर में लेकर गयी और बड़े ही प्रेमपूर्वक बाबा विश्वनाथ जी का पूजन करवाया

बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन पूजन करने के पश्चात आप उसी बृद्धा के साथ श्री अन्नपूर्णा मंदिर की ओर बढ़े बृद्धा मंदिर में चली गईं कुछ काल तक बृद्धा की प्रतिक्षा करने के बाद आप यह सोचकर आगे बढ़ लिये कि शायद यह बृद्धा का घर था , क्योंकि बृद्धा मंदिर में जाने के बाद बाहर नहीं निकली थीं आप जिधर से आये थे उधर ही वापस हो लिये डेढ़सी पुल पहुँचकर आपको आश्चर्य हुआ जिसे आप किसी संभ्रान्त कुल की महिला समझ रहे थे और श्री अन्नपूर्णा मंदिर को उनका घर, वही बृद्धा एकबार फिर डेढ़सी पुल पर खड़ी थी आपको चकित देखकर उन्होने पूछा "कि काशी आने का तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?" आपके अभिप्राय बतलाने पर बृद्धा ने कहा कि "आप यहाँ से अस्सी की ओर जाओ रास्ते में परमहंस साधकों का एक मठ है वहीं आपका अभिष्ट सिद्ध होगा " आगे कोई बातचीत हो इसके पूर्व ही वह बृद्धा आपको दिख सकीं आप कुछ निश्चय कर सके कि वह दयालु और ममतामयी बृद्धा कौन थीं ? आपको लगा कि उनके बतलाये मार्ग पर चलना ही उचित होगा

ऐसा निश्चय कर आप उनके बतलाये पथ पर चल दिये आगे जाने पर क्रींकुण्ड पर श्री महाराज किनाराम जी का स्थल मिला आप स्थल में लगभग साढ़े सात बजे प्रातः पहुँचे थे स्थल के वर्तमान महंथ बाबा राजेश्वर राम जी इस वक्त सो रहे थे आप एक ओर दालान में बैठ गये

क्रमशः

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