रविवार, जुलाई 25, 2010

गुरु पूर्णिमा २०१० दि. २५.०७.२०१०

गुरुमूर्ति अघोरेश्वर भगवान राम जी

                                                                                                                                     

।  वन्दे गुरुपद द्वंद्वँ, वाङ् मनश्चित्तगोचरम् ।
।।  श्वेत रक्तप्रभाभिन्नं,  शिवशक्त्यात्मकं परम् ।।

मैं शक्ति से युक्त शिव, वाणी, मन, चित्त आदि इन्द्रियों में व्याप्त, श्वेत रक्त प्रभा से अभिन्न श्रेष्ठ गुरुपदकमलयुगल की वन्दना करता हूँ ।

अघोरेश्वर भगवान राम जी के चरण कमल की वन्दना कर उनके मुखारबिन्द से निनादित वाणी में से गुरुतत्व का सूत्र सँकलित है । अघोरेश्वर कहते हैंः


" गुरु कोई खास हाड़, चाम के नहीं होते या कोई खास जाति, कास्ट के व्यक्ति नहीं होते हैं । गुरु तो वही होता है जिसे देखने पर हमें ईश्वर याद आये,  जिसे देखने पर माँ जगदम्बा के चिँतन की तरफ उत्सुकता हो ।

आप तो अपने कहीं , किसी भी पीठ में चाहे जड़ हो या चेतन हो, उसमें गुरुपीठ स्थापित करके, उस गुरुत्व आकर्षण की तरफ खिंचा सकते हैं । पर कभी स्थापित ही नहीं किये हों तो उस गुरुत्व के आकर्षण की तरफ आप जा भी नहीं सकते । भले आप ब्रह्मा, विष्णु, शिव या बहुत बड़े व्यक्ति भी हो सकते हैं । मगर अपनी निजी जो प्राणमयी भगवती हैं, उनके साथ आपकी तन्मयता नहीं हो सकती ।"

3 टिप्‍पणियां: