शुक्रवार, मई 06, 2011

अघोरेश्वर भगवान राम जी का महाप्रयाण

अघोरेश्वर
सन् १९९२ ई० के मध्य में फिर से पूज्य बाबा का स्वस्थ्य बिगड़ने लगा । उनका प्रत्यारोपित गुर्दा ठीक काम कर रहा था । कोई और बिमारी भी नहीं थी परन्तु बाबा का स्वस्थ्य गिरता जा रहा था । विशेषज्ञों की सलाह पर बाबा का अमेरिका जाना तय हुआ । बाबा ने भी सहमती दे दी । निश्चय हुआ कि बाबा को न्यूयार्क के माउन्ट सिनाई चिकित्सालय में उपचारार्थ भर्ती कराया जाय । बाबा की सेवा के लिये बाबा के अनन्य शिष्य श्री हरी पाण्डेय जी, जो श्री सर्वेश्वरी समूह के सोनोमा शाखा के उपाध्यक्ष तथा अँग्रेजी पत्रिका श्री सर्वेश्वरी टाईम्स के सम्पादक हैं, बाबा अनिल राम, एवँ श्री जिष्णु शँकर जी हर पल बाबा के साथ थे ।

बाबा स्वस्थ हो जाने के पश्चात चिकित्सालय से लौटकर गुरुदेव निवास आ गये । उनकी पूर्ववत दिनचर्या शुरु हो गई । रात्रि में अधिकाँशतः पद्मासन में बैठ ध्यान में झूमते रहते थे । ध्यान टूटने पर प्रायः देशवासियों, भक्तों व श्रद्धालुओं के बारे में पूछा करते थे । देश और समाज की समस्याओं, विश्व में हो रही घटनाओं पर भी विचार विमर्श करते रहते थे । प्रायः कमजोरी की शिकायत करते थे ।  बाबा अनिल राम जी की शतत दृष्टि बाबा के स्वास्थ्य पर रहती थी । वे बाबा के रक्तचाप, शुगर और नाड़ी की गति की जाँच करते रहते थे ।

ध्यान के इन्ही क्षणों में अघोरेश्वर कुछ कुछ बुदबुदाया करते थे । एक दिन की उनकी वाणी हैः

" रमता है सो कौन, घटघट में विराजत है, रमता है सो कौन, बता दे कोई.......। "
एक अन्य दिन बाबा ने जो बुदबुदाया उसे  उनके सानिध्य तथा सेवा का लम्बे समय तक अवसर प्राप्त करनेवाले परम सतर्क एवँ संयमी शिष्य श्री हरी पाण्डेय जी ने नोट कर लिया था । वह इस प्रकार से हैः

" मैं अघोरेश्वर स्वरुप ही स्वतँत्र, सर्वत्र, सर्वकाल में स्वच्छन्द रमण करता हूँ । मैं अघोरेश्वर ही सूर्य की किरणों, चन्द्रमा की रश्मियों, वायु के कणों और जल की हर बूँदों में व्याप्त हूँ । मैं अघोरेश्वर ही पृथ्वी के प्राणियों, बृक्षों, लताओं, पुष्पों और बनस्पतियों में विद्यमान हूँ । मैं अघोरेश्वर ही पृथ्वी और आकाश के बीच जो खाली है उसके कण कण में, तृषरेणुओं में व्याप्त हूँ । साकार भी हूँ, निराकार भी हूँ । प्रकाश में हूँ और अँधकार में भी मैं ही हूँ । सुख में हूँ और दुख में भी मैं ही हूँ । आशा में हूँ और निराशा में भी मैं ही हूँ । भूत में, वर्तमान में, और भविष्य में विचरने वाला मैं ही हूँ । मैं ज्ञात भी हूँ और अज्ञात भी । स्वतँत्र भी हूँ और परतँत्र भी । आप जिस रुप में मुझे अपनी श्रद्धा सहेली को साथ लेकर ढ़ूँढ़ेंगे मैं उसी रुप में आपको मिलूँगा ।"
सत्यम्, सत्यम्, सत्यम् ।

दि. २३ नवम्बर सन् १९९२ ई० को सब कुछ सामान्य था ।  बाबा की उस दिन बहुत ही सौम्य और शान्त मुद्रा थी । वे अन्तर्मुखी हो बैठे बैठे झूमते रहे जैसा कि वे प्रायः करते थे । शाम को आपने मछली बनाने के लिये कहा । बाजार से लाकर मछली पकाई जाने लगी । बाबा अपने शयन कक्ष में विश्राम के लिये चले गये । शाम के सात बजे बाबा अनिल राम जी ने बाबा के रक्तचाप, शुगर और नाड़ी की गति की परीक्षा की, सब कुछ सामान्य था । ऐसे अवसरों पर बाबा प्रायः पूछते रहते थे कि ब्लड प्रेसर कितना है, शुगर कितना है परन्तु उस दिन उन्होने कुछ नहीं पूछा । पद्मासन में बैठे बैठे पूज्य अघोरेश्वर ने अपना मेरुदण्ड सीधा किया और कुछ क्षणों के उपराँत धीरे से दाँई करवट हो बिस्तर पर लेट गये ।

श्री जिष्णुशँकर जी पास में ही बैठे थे । बाबा के इस प्रकार लेटने से उनको अनिष्ठ की आशँका हुई । उन्होने तत्काल अनिल बाबा और श्री हरी पाण्डेय जी को आवाज लगाया । दोनो दौड़े आये । पुकारने या हिलाने डुलाने से बाबा के शरीर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । अनिल बाबा तुरन्त आक्सीजन देने लगे । श्री हरी पाण्डेय जी ने  डाक्टर से सम्पर्क कर एम्बुलेन्स मँगाई । अगले दस मिनट के भीतर एम्बुलेन्स आ गयी । बाबा को चिकित्सालय ले जाया गया । कैटस्केन करने के बाद डाक्टर ने बतलाया कि हैमरेज हुआ है ।  डाक्टर के अनुसार ऐसा हेमरेज उसने पहले कभी नहीं देखा था । वह बोले कि ४८ घँटों के बाद ही कुछ बता पायेंगे । इन ४८ घँटों में बाबा के हृदय तथा नाड़ी की गति सामान्य बनी रही । रक्तचाप और तापमान भी सामान्य बनी रही । बाबा इस निर्विकल्प समाधि  की स्थिति में ४८ घँटों की सीमा पार कर गये परन्तु समाधि से उपराम होने के कोई लक्षण नहीं दिखे ।

 २५ नवम्बर को सुबह से ही निराश, हताश भक्तों को कुछ आशा बँधी । अघोरेश्वर के कुछ एक अँगों में हरकत हुई और आँखों में हल्की ही सही ज्योति आई । चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस प्रकर का शारीरिक परिवर्तन  असंभव है, परन्तु डाक्टर लोग भी निर्विकल्प समाधि की चर्चा सुन चुके थे, अतः वे सब भी आशावान दिखे । भारत में सभी को इस परिवर्तन से अवगत करा दिया गया । सभी शिष्यों, भक्तों, श्रद्धालुओं में आशा का संचार हो गया । सभी को आशा बँध गयी कि अघोरेश्वर इतनी जल्दी शरीर त्याग नहीं करेंगे । वे जरुर निर्विकल्प समाधि में हैं और उचित समय पर समाधि से उपराम होकर सबके बीच आयेंगे ।

२६ नवम्बर को बाबा की अनन्य भक्त एवं शिष्या रोजमेरी जी आ गई । आते ही वे बाबा की सेवा में लग गईं । उन्होने नर्स से पूछाः " क्या बाबा सुन सकते हैं ? " नर्स ने बताया कि शायद श्रवण शक्ति ही अँत में बिलुप्त होती है । रोजमेरी जी ने बाबा के कान के पास जाकर कहाः " बाबा " ! और चमत्कार हो गया । तीन दिनों से पड़े बाबा के निस्पन्द शरीर से सहसा बायाँ हाथ वेग से उठा और सटाक् से सीधे सिर के पास आकर पड़ रहा । रोजमेरी हर्षातिरेक से अचम्भित । पास में उपस्थित श्री जिष्णुशँकर जी स्तब्ध । कुछ क्षण के बाद रोजमेरी जी ने पुनः कहाः " बाबा ! हम सभी यहाँ हैं । हम सभी आपसे प्यार करते हैं ।" बाबा का शरीर निस्पन्द रहा । धीरे धीरे करके बाबा के शरीर में यदाकदा होने वाली फड़कन भी बिलुप्त होती गई ।
२६ और २७ नवम्बर को भी यही स्थिति बनी रही ।

बाबा गुरुपद संभव राम जी एवँ पँकज जी दिल्ली से रवाना हो गये थे । बाबा प्रियदर्शी राम जी को बीजा के मिलने में आ रही कठिनाई के कारण दिल्ली में समय लगा । बाबा गौतम राम जी बनारस में रहकर समस्त भक्तों को सम्भाल रहे थे । २८ नवम्बर का दिन । बाबा गुरुपद संभव राम जी का प्लेन संध्या तक न्यूयार्क पहुँचने वाला था  । वे शाम छै बजकर ३० मिनट पर सीधे अस्पताल पहुँच गये । श्री हरि पाण्डेय जी और बाबा अनिल राम ने अघोरेश्वर की स्थिति से उन्हें अवगत कराया । वे बाबा के पास भीतर गये । उन्होने अपना संजोया हुआ रुमाल दाहिने हाथ में लेकर बाबा के मस्तक पर फेरा । कुछ बोले नहीं । कुछ क्षणों बाद बाहर आ गये । थोड़ी ही देर में बाबा के डाक्टर बाहर आये और बोले कि लगता है बाबा ने निर्णय ले लिया । 

शाम के सात बज रहे थे । रक्तचाप नापने वाली मशीन एकाएक घँटी बजाकर आपात स्थिति सूचित करने लगती है । जिष्णुशंकर जी नर्स को बुला लाते है । डाक्टर भी आ जाते हैं । बाबा का रक्तचाप लगातार गिरता जा रहा है । डाक्टर द्वारा किया गया कोई भी उपाय कारगर नहीं हो रहा है । और सब कुछ समाप्त ।

डा. बरोज दौड़े दौड़े आये । बाबा के पार्थिव शरीर को प्रणाम कर अश्रुपात करते हुए उन्होने कहाः " बाबा हमारी चिकित्सा पद्धति से परे के जीव थे । उन्होने चिकित्सा जगत के हर नियमों का सम्मान भी किया और उन्हें पीछे छोड़कर आगे भी बढ़ गये । वह हमारे ज्ञान से परे थे । हम उन्हें प्रणाम करते हैं । मैंने उनके सानिध्य में बहुत कुछ सीखा, पाया, देखा । उनकी सेवा कर मैं भी धन्य हो गया ।"

रात्रि के दस बजे तक सारी औपचारिकतायें निपट गई । बाबा के पार्थिव शरीर को लेकर हम शव गृह पहुँचे । माननीय श्री चन्द्रशेखर जी की पहल पर भारतीय दूतावास के सहयोग से बाबा के पार्थिव शरीर को पद्मासन में ही लकड़ी की विशेष वातानुकूलित बाक्स में स्थापित कर, एयर इण्डिया की उड़ान के हिमालय नामक विमान से दिल्ली लाया गया । दिल्ली पहुँचने पर भुवनेश्वरी आश्रम, भोंड़सी में पूजन और दर्शन का आयोजन हुआ । उसके उपराँत विशेष विमान से पार्थिव शरीर को दिल्ली से बनारस लाया गया ।

क्रमशः



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