शनिवार, अप्रैल 18, 2015

अघोर वचन - 8

" बन्धुओ ! मैत्री और मित्र की बहुत बड़ी परिभाषा है । मित्र का दुःख सच्चे मित्र के लिये सभी दुःखों से बड़ा होता है । मित्र हमेशा अच्छे कार्यों के लिये प्रेरणा देता है । घटिया कार्यों के लिये प्रेरणा न देकर हमेशा मुनाफा के कार्य करने की प्रेरणा देता है ।"
                                                               ०००
दो लोगों के जब विचार मिलते हैं, मन मिलता है, निकटता होती है, आकर्षण होता है तब मैत्री की शुरूआत होती है, फिर वे एक दू्सरे का सुख - दुःख बाँटने लगते हैं । कुछ अँतराल के पश्चात उनके सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती जाती है और वे मित्र बन जाते हैं । मित्रता न तो आर्थिक, सामाजिक स्तर से प्रभावित होती है और न ज्ञान, शरीर सौष्ठव, या अन्य किसी बात से । इतिहास मित्रों की कथाओं से भरा पड़ा है । पुरातन काल में हुये कृष्ण और सुदामा की कथा इसका एक अन्यतम उदाहरण है ।

आज के जमाने में मित्र सस्ता एवँ बहु उपयोगी शब्द के रूप में व्यवहृत होने लगा है । सोशल मिडिया में बिना परिचय, केवल इन्टरनेट पर चित्र तथा व्यक्तित्व की दी गई सही - गलत जानकारी के आधार पर मित्र बन जाते हैं । एक व्यक्ति के हजारों मित्र होते हैं । इस मित्रता के पीछे सबका अपना, अपना स्वार्थ छिपा होता है । इस प्रकार की मित्रता का फेस - बुक - मित्रता एक अच्छा उदाहरण है । अन्य और अनेक इसी तरह की मित्रता के मँच हैं ।

विपरीत लिंग के आकर्षण में काम - तुष्टि के लिये भी मित्रता का उपयोग करते अनेक लोग देखे जाते हैं । इस प्रकार के मित्र बनने बनाने के लिये अनेक वेब - साइटें प्रचलित हैं । वेब - साइट संचालित करने वालों के लिये यह व्यापार है जबकि उसमें सम्मिलित होने वाले स्त्री पुरूष के लिये वासना तृप्ति का साधन । यह किसी भी तरह से मित्रता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता ।

मनुष्य के जीवन में बड़े भाग्य से एक या दो सच्चे मित्र मिलते हैं । ये निस्वार्थ भाव से मित्र के हर सुख दुःख में साथ निभाते हैं और अपने सुख दुःख में मित्र को सम्मिलित करते हैं । ये मित्र को कुमार्ग में जाने से रोकते हैं । अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा ही नहीं देते स्वयँ भी साथ चलते हैं ।

जीवन में कभी कभी दुर्भाग्यवश मनुष्य को सच्चा मित्र नहीं भी मिलता, अतः मित्र को जाँचे - परखे बिना अपनी गोपनीय बातें नहीं बतानी चाहिये अन्यथा मान - हानि होने की संभावना है ।
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