रविवार, मई 10, 2015

अघोर वचन - 22

" मैं नहीं कहता हूँ कि तुम इतना ही समझकर स्थिर हो जाओ । वह पूरी समझ नहीं है । इससे और आगे बढ़ो । इससे आगे और कुछ है, उससे भी आगे बहुत कुछ है, जिन्हें तुम्हे जानना है, जानकर अपनाना है, अपनाकर अपनापन समाप्त करना है ।"
                                                                   ०००

यह वचन गुरू का गूढ़ वाक्य है । यह शिष्य के लिये है और भक्त, श्रद्धालु के लिये भी है । गुरू ज्ञान देते हैं । रास्ता बताते हैं । रास्ते की कठिनाईयों के प्रति आगाह करते हैं । वे अपने से किसी भी रूप में जुड़े व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति पैनी निगाह रखते हैं ताकि वह आगे बढ़ता जाय । उसका पतन ना हो ।

गुरू द्वारा पथ दिखाकर पथिक को मँत्र, क्रिया और औषधि जैसे अस्त्र शस्त्रों से सज्जित कर दिया जाता है । लक्ष्य बता दिया जाता है । अब बच जाता है पथिक का चलना । पथिक को अपनी मँजिल पाने के लिये अपने पैरों चलना पड़ता है । इसमें गुरू हस्तक्षेप नहीं करते । इसीलिये वचन में कहा गया है कि जो तुमको बताया गया है, दिखाया गया है उसे ही सम्पूर्ण मानकर ठहर मत जाओ । स्थिर मत हो जाओ । आगे बढ़ो । चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति ।

अघोरेश्वर अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को, शास्त्रीय संदर्भों को, कठिनतम क्रिया विधियों को भी सहज और सरल भाषा में बता दिया करते हैं । यहाँ पर भी वे कह रहे हैं कि अपनापन समाप्त करना है । साधक जब आगे बढ़ते बढ़ते अपने लक्ष्य को पा लेता है फिर वहाँ अद्वेत की स्थिति आ जाती है । साधक और परमब्रह्म एकाकार हो जाते हैं । साधक की सत्ता, अपनापन ब्रह्म सत्ता में  विलीन हो जाता है ।

 यही है अध्यात्म की परमगति । भवसागर पार करना । मुक्ति । मोक्ष । या और भी जो नाम दिया गया हो ।
                                                                       ०००


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