शनिवार, मई 02, 2015

अघोर वचन -15

"दुःखों को ऋषियों ने संसार सागर कहकर सम्बोधित किया है । बिना नौका, पतवार, मल्लाह के इस संसार सागर को पार करने में प्रयत्नशील लोगों को तुफानी वेग, झँझावात और प्रचण्ड वायु के झकोरे नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं । महर्षियों ने इसे दुर्देव पिशाच की संज्ञा दी है, जिसने सौम्य और सुन्दर आकृति वाले, अतीव शीलवान, देदीप्यमान और संवेदनशील मानवों को भी अपनी चपेट से मुक्त नहीं किया है ।"
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दुःख बड़ा व्यापक शब्द है । दुःख मनुष्य के साथ जन्म से लेकर मृत्यु तक जुड़ा हुआ है । हम अपनी ओर से एक दुःख और जोड़ लेते है वह है जाति दुःख । स्त्री जाति और शूद्र जाति । ये दोनो वँचित जातियाँ हैं । इन दोनों जातियों को संसार सागर या भव सागर के पार जाने हक नहीं माना जाता । अवसर भी नहीं दिया जाता । जबकि ईश्वर की तरफ से ऐसा भेद नहीं किया गया है । सबको समान संभावनाओं के साथ धरती पर भेजा जाता है । इस बात को अनेक संत जैसे संत रबिदास, संत कबीर, संत घासीदास, संत रैदास, महिला संत राबिया आदि महात्माओं ने सिद्ध भी कर दिया है ।

दुःख क्या है । मनुष्य के शरीर में दश इन्द्रियाँ ( पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ ) होती हैं और ग्यारहवाँ होता है मन । मनुष्य का सारा कार्य व्यापार इन्ही से चलता है । मनुष्य को भोग और मोक्ष दोनों ही इन्ही के द्वारा प्राप्त होता है । इन्ही के चलते मनुष्य की अवनति और दुर्गति भी होती है । इन इन्द्रियों का साम्या भाव सुख है अन्यथा दुःख है । इसे हम यों समझें कि हमारी दर्शनेन्द्रिय आँखों को चाहे हुये सौन्दर्य के दर्शन नहीं होते या जिव्हा को चाहे गये रस का स्वाद नहीं मिलता तो यह हमारे दुःख का कारण हो गया । दुःख का जन्म हो गया । इसी प्रकार हमारे जीवन में मनोनुकूल कुछ भी नहीं होने से दुःख ही दुःख होते हैं । मनुष्य का इतना ही संसार होता है । यही भव सागर है । दुःखों से निवृत्ति ही भवसागर के पार जाना है ।

नौका, पतवार, और मल्लाह प्रतीक हैं । नदी के पार जाने के लिये इन तीनों ही की जरूरत होती है । इनके बिना नदी का पार उतरना कठिन होता है । डूबने की संभावना रहती है । जीवन संकट आ उपस्थित होता है । ठीक उसी प्रकार यह संसार भी सागर कहलाता है । इससे मुक्ति के लिये, भव सागर से पार उतरने के लिये भी मनुष्य को नौका रूप दीक्षा, पतवार रूप मँत्र एवँ मल्लाह रूप गुरू की आवश्यकता होती है । इनके बिना संसार सागर से पार उतरने के प्रयास करने वाले मुक्ति कामी, सचरित्र, सदाचारी और भले लोगों को भी पतन का मुख देखना पड़ता है । जीवन व्यर्थ कार्यों में ही व्यतीत हो जाता है । लक्ष्य से भटकन की स्थिति बन जाती है ।
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