रविवार, जून 14, 2015

अघोर वचन -35


" गलत कर्मों की तरफ प्रेरित करने वाले मित्र नहीं होने चाहिये । क्योंकि उससे हमारा स्वास्थ्य खराब होता है, मस्तिष्क क्षीण होता है और हम तरह तरह की व्याधियों को जन्म दे सकते हैं ।"
                                                              ०००

कर्म का गलत सही होना कब होता है ? यह विचारणीय प्रश्न है । इस पर विचार करने से पता चलता है कि जिन कर्मों से मानव शरीर के विकास में बाधा आती है, शारीरिक नुकसान झेलना पड़ता है, मानसिक दशा बिगड़ती है, मन अनुशासन, नैतिकता जैसे सामाजिक मुल्यों की अवहेलना करता है, मानव पशु वृत्ति अपना लेता है, को गलत कर्म कहा जाता है । इनसे इतर जो कर्म हैं वे सत्कर्म कहलाते हैं ।

हम गलत कर्म में मित्रों के बहकावे में, उकसावे में, संग साथ में, प्रेरित करने से प्रवृत होते हैं । कई बार हम स्वयँ ही गलत कर्म की ओर आकर्षित होकर शुरू कर देते हैं, परन्तु ऐसा कम ही होता है । हम देखते हैं कि नशेड़ियों का, भँगेड़ियों का, जूआड़ियों का, शोहदों का, छेड़छाड़ करने वालों का, मारपीट करनेवालों का, आदि आदि गलत कर्म करने वालों का गुट होता है । वे आपस में मित्र होते हैं । एक दूसरे को प्रेरित करते हैं । साथ देते हैं ।

वचन में कहा गया है कि हमारे ऐसे मित्र यदि हों तो हमें उनका संग साथ छोड़ देना चाहिये । गलत कर्म से तत्काल किनारा कर लेना चाहिये । कहा जाता है " जब जागे तभी सबेरा ।" यह सही है कि गलत कर्म व्यक्ति को बहुत आकर्षित करते हैं । यदि हमारा मन थोड़ा भी कमजोर हुआ कि हम गलत कर्म में प्रवृत हो जाते हैं । यह भी सही है कि गलत कर्मों का छूटना असम्भव सा लगता है । बड़ी कठिनाई से छूटता है । मौका पाकर फिर पकड़ लेता है । यह बताता है कि व्यक्ति का मस्तिष्क क्षीण होता जा रहा है । उसकी आत्म शक्ति बलवान नहीं रही । उसका शरीर गलत कर्मों के प्रभाव से व्याधियों की क्रिया स्थली भी बनता जाता है ।
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