सोमवार, जुलाई 06, 2015

अघोर वचन -40


" असत्य पुरूष उसे कहते हैं जो बिना पूछे दूसरे के अवगुण को बार बार दुहराता है, निन्दा करता है, अपने अवगुण को ढ़ाँकता है । वह बिल्कुल साथ करने के योग्य नहीं है, निन्दनीय विचारों से परिपूरित पात्र है ।"
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मनोवैज्ञानिकों ने, महात्माओं ने, ऋषियों ने मानव के सोचने, देखने की प्रवृत्ति का गहन अध्ययन, गँभीर गवेषणा के पश्चात पाया कि पुरूष (नर, नारी दोनों ) को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है । १, उत्तम पुरूष । २, मध्यम पुरूष । ३, अन्य पुरूष । व्यक्ति स्वयँ को हर हमेशा उत्तम पुरूष मानता है । दूसरा व्यक्ति जो सामने होता है उसमें कम मात्रा में अवगुण देखता है, इसलिये वह दूसरा व्यक्ति मध्यम पुरूष होता है । तीसरा जो अनुपस्थित व्यक्ति है वह अन्य पुरूष है । अन्य पुरूष को अवगुणों का भँडार माना, समझा जाता है ।

व्यक्ति अपने उत्तम पुरूष होने के अहँकार में दूसरों के अवगुणों को बढ़ा चढ़ा कर जगह जगह बखान किया करता है । दूसरों पर हँसता है । निन्दा करता है । नीचा दिखाने का प्रयास करता है । ऐसा वह अपने अवगुणों को ढ़कने के लिये करता है, और ज्यादातर अपने को ऊँचा दिखाने के लिये भी करता है । ऐसा मनुष्य हमारे सामने भले ही हमारा आत्मीय बना रहे । हमारे अवगुणों को प्रचारित ना करे । हमारी निन्दा ना करे, पर हमारी अनुपस्थिति में, हमारे सामने जैसे दूसरों की गलतियाँ छाँटता है, भला बुरा कहता है, हमारी भी करेगा । ऐसे व्यक्ति का साथ रहने से, उसके परनिन्दा से भरे विचार हमारे मन को भी कलुषित कर देंगे । सँग साथ का हम पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता । इसलिये ऐसे व्यक्ति से हमें दूर ही रहना चाहिये ।

पुरूषमात्र के लिये सत्यनिष्ठा को आवश्यक माना गया है । इसके अनुपालन के लिये यह आवश्यक है कि मनुष्य को सत्य का ज्ञान हो । समझे । देखे । व्यवहार में उतारे । यह वह पथ है कि जिसमें चलकर मनुष्य मन, कर्म और वचन से पवित्रता को पाता है । यही पवित्रता उसके अस्तित्व को सत या सत्य में परिणत कर देती है और वह मनुष्य सत्य पुरूष कहलाने के योग्य हो जाता है । इसके बिरूद्धाचरण वाला मनुष्य असत्य पुरूष की श्रेणी में गिना जाता है ।
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