शुक्रवार, जनवरी 07, 2011

अघोरेश्वर भगवान राम जीः आशीर्वचन

प्राण

अघोरेश्वर भगवान राम जी के जीवन की विराटता, रहस्यमयता, माधुर्य और सरलता अपने आप में अन्यतम रहा है । जो व्यक्ति उनके सम्पर्क में आये हैं वे उन्हें अपना पाये हैं । प्रत्येक शिष्य, भक्त, श्रद्धालु अपने आप को उनकी अहैतुकी कृपा का एकमात्र अधिकारी समझता रहा है । वे एक ही समय में गुरु ,  माँ, सुहृद, अन्तरतम में बैठा ईष्ट, आदि अनेक रुप व गुण में देखे सुने जाते रहे हैं ।  उन्होने कहा है " गुरु देह नहीं हैं, प्राण हैं ।"
प्राण के विषय में उनकी कतिपय वाणियों का संग्रह यहाँ प्रस्तुत है ।

"  पिण्ड में प्राण ही तो प्राणियों का चैतन्य है । ब्रह्माण्ड में उसे वायु कहा जाता है । प्राण वायु ही हमारा उपास्य है । अपने आप की पूजा ही हमारी उपासना है ।


" एक ही प्राण ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र सभी में समान रुप से प्रतिबिम्बित है । ..... पाँव रुपी शूद्रों में बसे प्राण की अवहेलना कर, प्रतारणा कर, अपमान कर हम अपना सर्वनाश करने पर तुले हैं ।"

" चारों प्रकार के भोज्य पदार्थ चर्व्य, चोष्य,लेह्य, और भक्ष्य प्राण रक्षा के निमित्त ही होते हैं । उसके बिना हम लोगों का यह जो ईश्वर है ( ईश्वर ) यह स्वर बन्द हो जायेगा । जब " स्वर" बन्द हो जायेगा तो यह सृष्टि हमारी दृष्टि से ओझल हो जायेगी । इस नश्वरता से तो सभी लोग परिचित हैं ।"

जठराग्नि जो प्राणियों में प्राण संजोये हुए है, वह प्रज्वलित रहती है । उसमें ही आहुति देना प्राण को समिधा, स्नेह, शालीनता, शील देने सरीखे है । उसमें आहुति देना महावैश्वानर की पूजा है । जिसने प्राण को श्रद्धा समिधा नहीं अर्पित की है, प्राण की उपेक्षा कर रखी है, वह अनेक रोगों से, उदर विकार से निश्चेष्ट पड़ा रहता है । वह जठराग्नि को आहुति नहीं दे पायेगा । जन समाज उसे रोगी कहकर सम्बोधित करता है और उसके बारे में कहता हैः " इन्हें खाने पीने में अरुचि हो गई है । बाबा !  इन्हें कुछ पच नहीं रहा है । बाबा !  इन्हें मिचली आती है" । कारण कोई विशेष महत्व नहीं रखता । सिर्फ इतना ही महत्व का है कि उस व्यक्ति ने प्राण को संजोया नहीं । पिण्ड में प्राण ही तो प्राणियों का चैतन्य है । ब्रम्हाण्ड में उसे वायु कहा जाता है ।  वायु के शुष्क हो जाने पर कितना क्लेश होता है, कितनी असह्य वेदना होती है ?  अरे बाबा ! जिसने प्राण को संजोया है, उसी ने, सम्यक रुप से, चिरस्थायी जीवन को जाना है, जीवत्व को पहचाना है । वह इस सूक्ति को चरितार्थ करता है, " धन धरती का एक ही लेखा, जस बाहर तस भीतर देखा " ।

प्राण की उपासना सहज है , सुगम है, कठोर नहीं है । हाँ एक बात अवश्य है जो अपने अभ्यंतर में आसक्तियों को छिपाये, संजोये बैठा है उससे तो प्राण बहुत ही दूर है, बहुत ही अपरिचित है । इन आसक्तियों ने मित्र बनकर उस व्यक्ति के अभ्यंतर को कूड़ा कर्कट बना रखा है ।

गुरु देह नहीं हैं प्राण हैं । जबतक तुम्हारा प्राण रहेगा वे तुम्हारे अभ्यंतर में विराजमान रहेंगे ।

दर्शी ! एक बात तुम जान जाओ कि जागृति और सुषुप्तावस्था की उत्कँठा से मुक्त होकर, प्राण जहाँ है वहीं उसे अपने आप में रोक कर रखने का अभ्यास करने से , पिण्ड के भीतर एक नया आविष्कार साकार हो उठता है, जो सत्य है, जो प्रत्यक्ष है । उस मनोदशा में किसी ओर से कोई भी आक्रमण बिल्कुल ही कष्टदायक नहीं प्रतीत होता और उससे किसी प्रकार की उद्विग्नता या उत्तेजना उत्पन्न नहीं होती । इस अवस्था को " उन्मनी " कहते हैं । जब साधक को अनुभूति होती है कि वह न सोया है, न जगा है, न चेतन है, न तो "है" और न " नहीं है" का ही कोई आभास प्रतिबिम्बित होता है । उस समय वह प्राण के साथ आलिंगन में अपने ही प्राण में  उन्मुदित हो जाता है । शास्त्रों में इस अवस्था को उन्मनी कहा है ।

क्रमशः


5 टिप्‍पणियां:

  1. श्री सुरेश कुमार पंडाजी का यह प्रयास सराहनीय और अतुलनीय है. पुज्य अघोरेश्वर महाप्रभुजी के ऐसे भक्त जिन्हे पूज्यश्री का साहित्य सरलता से उपलब्ध नहीं हो पाता है, ऐसे भक्तो के लिए अघोर पथ वरदान की तरह है, यहाँ जिस सुंदर रूप में सरकार की वाणी को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है वो अद्वितीय है. सबसे बड़ी बात है, कि सरकार की वाणी अपने मूल रूप में अघोर पथ को सुशोभित करती हैं, जैसा का तैसा प्रस्तुत किया आदरणीय पंडा जी ने कोई परिवर्तन नहीं किया, मानो सरकार स्वयं बोल रहे हैं, और हम सब श्रवण कर रहे हैं. अघोर पथ आप ही लिख सकते थे क्योंकि आपको १९७३ में सरकार ने दीक्षित किया था, इतने लंबे समय तक पूज्य श्री का सानिध्य प्राप्त करना सौभाग्य की बात है. मैं स्वयं आदरणीय पंडा जी से प्रेरणा एवं मार्गदर्शन प्राप्त करता रहा हूँ. अघोर पथ के लिए हृदय से आभार एवं साधुवाद.

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  2. har din me apke blog ko follow kar raha tha par kafi dino bad naya post aaya man anaddit ho gaya sarkar baba ki vani isi tarh hame batate rahe isase achha koe karm nahi apko dhanywad.jay aghoreshwar

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  3. अभिषेक जी की माँग उचित है, परन्तु " सो जानई जेहु देई जनाई" । अघोरेश्वर की कृपा होने पर ही कुछ करना संभव हो पाता है ।

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  4. गुरु देह नहीं हैं प्राण हैं । जबतक तुम्हारा प्राण रहेगा वे तुम्हारे अभ्यंतर में विराजमान रहेंगे ।

    jai gurumaharaj ki jai

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